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शुक्रवार के दिन मां संतोषी की व्रत कथा, होगी हर मनोकामना पूरी

 
मां संतोषी को मां दुर्गा के सबसे शांत, कोमल रूपों में से एक माना जाता हैं। संतोषी माता कमल के फूल में विराजमान हैं। मां संतोषी के पिता भगवान गणेश और माता रिद्धि-सिद्धि हैं। धन-धान्य और रत्नों से भरा परिवार होने के कारण इन्हें देवी संतोषी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार शुक्रवार का दिन माता संतोषी को समर्पित होता है। इस दिन मां संतोषी की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन मां का व्रत रखने से आपकी हर इच्छा पूरी हो जाती हैं। जानिए पूजा विधि, व्रत कथा, सामग्री और आरती।
 
एक बूढी औरत थी, जिसके 7 बेटे थे। इनमें से 6 बेटे बहुत मेहनती थे औए एक बेटा, जो सभी भाइयों में सबसे छोटा था। वह आलसी था और कुछ भी नहीं कमाता था। जब वो बूढी औरत खाना बनाती तो अपने 6 बेटों को अच्छे से खाना खिलाती और निकम्मे बेटे को सभी भाइयों की जूठन वाला खाना परोस देती थी। सबसे छोटा बेटा बहुत भोला था और इस बात से अनजान भी था। एक दिन सबसे छोटे बेटे ने अपनी पत्नी से कहा कि 'देखो मेरी मां मुझे कितना प्यार करती हैं।' इस पर उसकी पत्नि व्यंग करते हुए बोली कि हां क्यों नहीं, रोज सभी की जूठन जो परोस कर दे देती हैं। इस बात को सुनकर उस बेटे ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता हैं? जब तक मैं स्वयं अपनी आंखों से नहीं देख लेता, तुम्हारी इस बात पर विश्वास नहीं करूंगा। तब पत्नी ने कहा कि स्वयं देखने के बाद तो विश्वास करेंगे ना।
 
कुछ दिनों बाद एक त्यौहार आया और घर में विभिन्न प्रकार के व्यंजन और लड्डू आदि बनाए गए। अपनी पत्नी द्वारा कही गयी बात की सच्चाई को परखने के लिए सबसे छोटा बेटा तबियत ख़राब होने का बहाना करके रसोई में गया और वहीं ज़मीन लेट गया और मुंह पर एक पतला कपड़ा ढंक लिया ताकि वह सब देख सकें। सभी भाई रसोई में भोजन ग्रहण करने आये। उसकी माँ ने सभी 6 भाइयो को लड्डू और अन्य व्यंजन बहुत ही प्रेम पूर्वक परोसे और जब उन सभी ने भोजन कर लिया और वे चले गये, तब उन 6 भाइयों की थाली में से बचे हुए भोजन को इकठ्ठा करके मां ने सबसे छोटे बेटे की थाली परोसी और लड्डू का जो भाग बचा था, उन्हें मिलाकर एक लड्डू बनाकर छोटे बेटे की थाली में रख दिया। छोटा बेटा इस पूरे क्रियाकलाप पर नज़र रखे हुए था। इसके बाद उसकी मां ने उसे आवाज लगाई कि बेटे उठ जाओ, तुम्हारे सारे भाई भोजन करके चले गये हैं, तुम कब भोजन करोगे, उठो और भोजन ग्रहण कर लो। तब वह उठा और बोला कि माँ तुम मुझे सबकी जूठन परोसती हो, मुझे इस प्रकार का भोजन नहीं करना हैं, मैं घर छोड़कर जा रहा हूँ। तब उसकी माँ ने भी कह दिया कि ठीक हैं यदि जाते हो तो जाओ और अगर कल जाने वाले हो तो आज ही चले जाओ। माँ के मुंह से इस प्रकार के कटु वचन सुनकर बेटा बोला कि हां, मैं आज ही जा रहा हूं और अब कुछ बनकर ही घर लौटूंगा।
 
यह कहकर वो घर से जाने ही वाला था कि तभी उसे अपनी पत्नी का स्मरण हुआ। उसकी पत्नी गायों के तबेले में गोबर के कंडे बना रही थी। वह तबेले में गया और अपनी पत्नी से बोला कि मैं कुछ समय के लिए दूसरे देश जा रहा हूं। तुम यहीं रहो और अपने कर्तव्यों का पालन करो। मैं कुछ समय बाद धन कमाकर वापस लौट आऊंगा। तब उसकी पत्नी ने कहा कि आप बेफिक्र होकर जाइए और अपने काम में अपना ध्यान लगाइए। जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं आपका यहीं रहकर इन्तज़ार करूंगी। परन्तु अपनी कोई निशानी मुझे दे जाइये। तब उसने कहा कि मेरे पास तो कुछ भी नहीं हैं सिवाय इस अंगूठी के तुम इसे मेरी निशानी के रूप में रख लो और अपनी भी कोई निशानी मुझे दो। तब उसकी पत्नी ने कहा कि मेरे पास तो कुछ भी नहीं हैं। तब उसके हाथ गोबर से भरे हुए थे तो उसने उसके पति की कमीज़ पर पीठ पर अपने गोबर से भरे हाथों की छाप छोड़ दी और कहा कि यही मैं निशानी के तौर पर आपको देती हूं।
 
इसके बाद छोटा बेटा दूसरे देश धन कमाने के उद्देश्य से चला गया। चलते-चलते वह बहुत दूर तक आ गया। तब उसे एक बहुत बड़े व्यापारी की दुकान दिखाई दी। वह उस दुकान पर गया और बोला कि सेठजी, मुझे आप अपने यहां काम पर रख लीजिये। उस समय सेठ को भी एक आदमी की आवश्यकता थी। सेठ ने उसे काम पर रख लिया। वह वहां नौकरी करने लगा और कुछ ही दिनों में उसने खरीदी, बिक्री, हिसाब – कताब और अन्य सभी काम भी बहुत ही अच्छे से संभाल लिए। उस सेठ के यहां और भी नौकर थे, वे सभी और स्वयं सेठ भी यह सब देखकर बहुत हैरान थे कि यह व्यक्ति कितना बुद्धिमान और होशियार हैं। उसके काम को देखकर 3 महीनों में ही सेठ ने उसे अपने व्यापार में बराबरी का साझेदार बना लिया और अगले 12 वर्षों में वह बहुत ही प्रसिद्ध व्यापारी बन गया और अब सेठ ने पूरे कारोबार की बागडोर उसके हाथ में दे दी और खुद दूसरे देश चला गया।
 
उसकी पत्नि के साथ उसके सास और ससुर अर्थात् बेटे के माता -पिता बहुत बुरा बर्ताव करने लगे। घर के सभी कामों का बोझ उसकी पत्नी पर डाल दिया और इसके साथ ही उसे जंगल में लकड़ियां लेने भी भेजते थे। इसके अलावा उसके लिए जो रोटी बनती थी, वह अनाज की नहीं, बल्कि भूसे की होती थी और पीने का पानी उसे टूटे हुए नारियल के कवच में दिया जाता था। उसके दिन इतनी कठिनाइयों में बीत रहे थे।
 
एक दिन जब वह लकड़ियां चुनकर जंगल से अपने घर की ओर लौट रही थी तो उसने कुछ औरतों को संतोषी माता का व्रत करते हुए देखा. वह वहां खड़ी हो गयी और माता की कथा सुनने लगी। इसके बाद उसने वहां उपस्थित औरतों से पूछा कि बहनों, आप यह किस भगवान का व्रत कर रही हैं और इससे आपको क्या फल प्राप्त होगा? इसे करने के नियम क्या हैं? अगर आप मुझे इस बारे में बताएंगी तो आपकी बड़ी कृपा होगी और मैं भी इस व्रत को करुंगी। तब उनमें से एक औरत बोली कि हम सभी यहाँ मां संतोषी का व्रत और पूजा कर रहे हैं। इस व्रत को करने से सारी विपत्तियां और संकट टल जाते हैं, धन की प्राप्ति होती हैं और सारी परेशानियां दूर होती है।
 
स्त्रियों ने बताया, शुक्रवार को स्नान करते हुए एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए। खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना। एक वक्त भोजन करना। व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी।
 
माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया। कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। उसने प्रसन्न मन से फिर माता का व्रत रखा और मंदिर में जाकर अन्य स्त्रियों से कहा,संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है। अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं। बहू ने कहा-हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी। अब एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं। रुपया भी अभी नहीं आया है। उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत मांगी लेकिन पर सेठ ने मना कर दिया। मां की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चांदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए। कर्जदार भी धन लौटा गए। तब साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी।
 
घर आकर पुत्र ने अपनी मां व पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए। पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारियां की। पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईर्ष्या करने लगी थी। उसने अपने बच्चों को सिखाया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना। उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई मांगने लगे तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे, ऐसा होने पर बहू पर संतोषी माता क्रोधित हुईं। नगर के राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे, बहू की स्थिति पुन: वैसी ही हो गई तब उसने माता के मंदिर में जाकर पूछा कि मां मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है तब मां ने कहा कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है जिसका परिणाम तुम्हें भुगतना पड़ रहा है। फिर बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया।सभी मनोकामनाओं की होती है पूर्तिसंकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला कि जो इतना धन कमाया था राजा के पास उसका कर चुकाने गया था। तब वह बोली कि अब चलो घर चलते हैं। फिर अगले शुक्रवार को उसने विधिवत व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी मां प्रसन्न हुई। 9 माह बाद दंपत्ति को सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई।
 
अब सास, बहू तथा बेटा मां की कृपा से आनंद से रहने लगे। संतोषी माता की अनुकंपा से व्रत करने वाले सभी स्त्री-पुरुषों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हां संतोषी मां के व्रत में एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि खट्टी चीजों से परहेज करना चाहिए।