राजकुमार भरत को राजसिंहासन पर बैठाने के लिए कैकयी ने राजा दशरथ से वचन लिया कि वह राजकुमार राम को 14 वर्ष के लिए वनवास भेज देंगे. राजा दशरथ नहीं चाहते हैं थे कि उनके आंख के तारे राम शाही जीवन छोड़ वनवास की जिंदगी बिताए. लेकिन पिता दशरहत का वचन पूरा करने के लिए श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के लिए घर से निकले तो अनुज लक्ष्मण और अर्धांगिनी सीता भी साथ गईं. इस दौरान छोटे भाई भरत और शत्रुघ्न अपनी ननिहाल में थे, लेकिन जब वे लौटे तो भाई के वियोग में उन्होंने भी राजमहल छोड़ दिया. भरत भाई की चरणपादुका रखकर नंदीग्राम के जंगल में कुटिया बनाकर तपस्वी के भेष में रहते हुए राजपाट देख रहे थे. वह यहां जमीन पर सोते थे और नदी पोखरे का पानी पीते, कंदमूल फल खाते.
इधर, तीनों भाइयों के राजमहल छोड़कर जंगल में रहने से आहत चौथे भाई शत्रुघ्न ने भी अयोध्या छोड़ने का फैसला कर लिया. बिना किसी को बताए वह नंदीग्राम में ही जाकर भाई भरत की कुटिया के बाहर तपस्वी की तरह रहने लगे. बताया जाता है कि पूरे 13 साल तक पूरी अयोध्या तो क्या खुद मां कौशल्या को भी इसकी खबर नहीं थी.
एक दिन रात के समय राजमहल की छत पर कौशल्या ने शत्रुघ्न की पत्नी श्रुतकीर्ति को अकेले टहलते देखा तो चौंक उठीं. उन्होंने तत्काल पहरेदारों के जरिए उन्हें बुलवाया. श्रुतकीर्ति के आने पर कौशल्या ने उनसे पूछा, तुम अकेले छत पर क्यों टहल रही हो, शत्रुघ्न कहां है, तो श्रुतकीर्ति ने कहा, मुझे नहीं पता माता, वह तो मुझे 13 वर्षों से कहीं नहीं दिखे हैं. यह सुनकर कौशल्या बहुत दुखी हो गईं और खुद आधी रात ही सैनिकों के साथ शत्रुघ्न को खोजने निकल पड़ीं कई जगह पूछने पर पता चला कि वह नंदीग्राम में हैं. कठिन रास्तों से होते हुए मां कौशल्या नंदीग्राम पहुंची तो वहां भरतजी कुटिया बनाकर तपस्वी के भेष में दिखे, जबकि कुटिया के बाहर बड़ी चट्टान पर अपनी बांह का तकिया बनाए शत्रुघ्नजी गहरी नींद में सोए मिले. बेटे को ऐसी हालत में देखकर मां कौशल्या द्रवित हो उठीं.
उन्होंने शत्रुघ्न को छूकर आवाज लगाई तो वो चौंक कर उठे. शत्रुघ्न ने हैरानी से पूछा, मां यहां कहां, आपने आने का कष्ट क्यों किया, मुझे ही बुला लेती. मां कौशल्या उन्हें दुलारते हुए बोलीं, क्या अपने बेटे से मिलने नहीं आ सकती, लेकिन तुम यहां क्यों सोए हो, अयोध्या में क्यों नहीं. तभी शत्रुघ्न भावुक हो उठे, उन्होंने कहा, मां बड़े भैया राम पिता का आदेश मानते हुए वन चले गए, साथ भैया लक्ष्मण और भाभी सीता भी गए अब भैया भरत भी नंदीग्राम में कुटिया बनाकर रह रहे हैं तो क्या राजमहल का ठाट बाट मेरे लिए ही था? इस पर मां कौशल्या कोई जवाब न दे सकीं।
शत्रुघ्न ने भाइयों को वन में रहते हुए खुद भी पत्नी और भोग विलासिता से दूरी बना ली थी, मगर माता कौशल्या के आदेश पर उन्हें मथुरा का राजा बनाया गया और पत्नी श्रुतकीर्ति के साथ वहां रहने का आदेश दिया गया. श्रुतकीर्ति सीता की चचेरी बहन और दशरथ के छोटे भाई राजा कुलध्वज की पुत्री थीं. इस तरह 13 वर्ष का वनवास काटकर शत्रुघ्न मथुरा के राजा बने तो शत्रुघ्न जंगल से राजकाज चलाते हुए राम के वनवास पूरे होने के बाद अयोध्या लौटे.