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आज है वट पूर्णिमा व्रत पूजा. आज के दिन सुहागिन पति की लंबी आयु के लिए ये व्रत रखती हैं. जैसे उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत का पर्व मनाया जाता है. उसी तरह गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा समेत दक्षिण भारत में वट पूर्णिमा व्रत का पर्वा मनाया जाता है. यह व्रत ज्येष्ठ की पूर्णिमा की तिथि के दिन रखा जाता है. इस दिन सुहागिन बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं. र्मिक मान्यता है कि वट के वृक्ष के नीचे सावित्री के पति सत्यवान को जीवनदान मिला था. यही वजह है कि इस व्रत में वट के वृक्ष का पूजन करते हैं और इस पर सूत बांधते हैं.
वट पूर्णिमा व्रत का महत्व
सुहागिन महिलाएं सौभाग्य की प्राप्ति और पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत करती हैं. इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा भाव से रखा जाता है. धार्मिक पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी. वहीं मान्यता यह भी है कि इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहता है और घर में सुख-समृद्धि आती है.
कथा -
वट पूर्णिमा व्रत सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्यवती होने और पति की लंबी आयु होने के लिए रखती हैं. वट पूर्णिमा व्रत के दिन महिलायें सत्यवान- सावित्री की कथा सुनती हैं. कथा के अनुसार, अश्वपति नाम के राजा की पुत्री सावित्री थी. सावित्री के विवाह के समय नारद जी ने सत्यवान के अल्पायु होने की भविष्यवाणी की थी. इसके जानने के बाद भी सावित्री ने अल्प आयु सत्यवान से ही विवाह किया. विवाह के एक वर्ष के बाद एक दिन सत्यवान लकड़ी काटते-काटते थक गया और वह बरगद के पेड़ की नीचे सोने लगा. नींद से न जागने पर सावित्री को नारद जी की भविष्यवाणी याद आयी. यमराज को सत्यवान का प्राण ले जाते देखकर सावित्री ने यमराज को स्वयं 100 पुत्रों की मां होने के वरदान की याद दिलाई. तब यमराज ने सावित्री के तप और सतीत्व को देख कर सत्यवान के प्राण लौटा दिए. यमराज के प्राण लौटते ही सत्यवान जीवित हो गए. यह घटना बरगद के पेड़ के नीचे हुई थी. इसी कारण से इस दिन को वट सावित्री या वट पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं.