हिन्दू धर्म में हर व्यक्ति अपने इष्ट देव की पूजा किसी न किसी रूप में करता है. हिन्दू धर्म ग्रंथों में हर भगवान की पूजा और भोग अलग-अलग विधि से लगाने का विधान माना जाता है. हम सभी को भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के बारे में पता है, भगवान श्री कृष्ण को हम कई अन्य नामों से भी जानते हैं. बचपन से बाल लीला करने और नटखट मिजाज के चलते श्री कृष्ण बाल्यकाल से ही प्रसिद्ध थे. श्री कृष्ण ने कंस वध से लेकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि तक मानव को जीवन जीने की कला सिखाई. आज के समय में गीता का ज्ञान कलयुग में मनुष्यों के लिए मोक्ष का मार्ग है. हर व्यक्ति गीता के ज्ञान को अपने में समाहित करना चाहता है. भगवान श्री कृष्ण बचपन से ही खाने के बड़े शौकीन थे और हम जब भी जन्माष्टमी मनाते हैं, तो लड्डू गोपाल को 56 भोग लगाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्यों भगवान श्री कृष्ण को 56 भोग लगाए जाते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण का बाल्यकाल गोकुल में बीता. उनकी माता यशोदा उन्हें प्रतिदिन आठ प्रहर भोजन कराती थीं. एक बार देवराज इंद्र गोकुल वासियों से रुष्ट हो गाए और उन्होंने गोकुल पर बारिश का कहर बरसाया. तब भगवान श्री कृष्ण ने सात दिनों तक बिना खाये-पिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाये रखा और सातवें दिन जब बारिश रुक गई और गोकुल वासी गोवर्धन के नीचे से निकल आये तब उन्हें ध्यान आया कि कान्हा ने तो सात दिनों से कुछ खाया ही नहीं है. तब माता यशोदा और सभी गोकुलवासियों ने श्री कृष्ण के लिए सात दिन और आठ प्रहर के हिसाब से छप्पन प्रकार के अलग अलग पकवान बनाये और लड्डू गोपाल को खिलाए. तभी से भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाने की प्रथा चली आ रही है.
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