हिन्दू धर्म में भगवान से जुड़ी कई ऐसी मान्यताएं हैं जिनके बारे में लोग शायद कम ही जानते हैं। वैसे तो आज के इस दौर में भगवान के दिव्य दर्शन हो पाना नामुमकिन है, लेकिन उनके चमत्कार आज भी हमें उनकी मौजूदगी का एहसास कराते हैं। एक ऐसा ही चमत्कार आप प्रयागराज के संगम तट पर स्थित ‘लेटे हनुमान मंदिर’ में देख सकते हैं, जहां भक्तों को उनकी मौजूदगी का एहसास होता है। संगम नगरी प्रयागराज में स्थित लेटे हनुमान जी का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। प्रयागराज के इस प्राचीन मंदिर में हनुमान जी की अनोखी मुद्रा में स्थापित प्रतिमा देखने को मिलती है। इस मंदिर में हनुमान जी लेटे हुए उपस्थित हैं, इसलिए यह मंदिर लेटे हनुमान जी के नाम से प्रख्यात है। संगम तट के किनारे स्थापित यह अनूठा मंदिर अपनी भव्यता के लिए मशहूर है। हर वर्ष यहां दूर-दूर से श्रद्धालु लेटे हनुमान जी के दर्शन करने आते हैं। लेटे हनुमान जी के मंदिर से जुड़ी कई प्रचलित कथाएं लोकप्रिय हैं। मगर, बहुत कम लोग यह जानते हैं कि लेटे हुए हनुमान जी के सामने शक्तिशाली बादशाह अकबर भी नतमस्तक हो गया था। इस मंदिर का इतिहास बेहद दिलचस्प है जो आप सभी को जानना चाहिए। -बात उस समय की है जब भगवान श्री राम लंका पर विजय हासिल कर वापस प्रयाग संगम तट पर आये थे। लंका पर अपनी विजय का परचम लहराने के बाद श्री राम, लक्ष्मण जी और माता सीता, हनुमान जी सहित प्रयाग में ऋषि भारद्वाज के आश्रम पर आये थे। यहां आने के बाद हनुमान जी बहुत अस्वस्थ हो गये और अत्यंत शारीरिक पीड़ा से ग्रस्त हो गए। उनकी पीड़ा इतनी तीव्र थी कि वे मरणासन्न होकर धरती पर गिर पड़े। बजरंगबली की ऐसी अवस्था देखकर भगवान श्री राम जी और माता सीता अत्यंत चिंतित हो उठे, क्योंकि उनके सामने ही उनके परम भक्त हनुमान असहनीय दर्द से कराह रहे थे और पीड़ा सहते-सहते हनुमान जी मरणासन्न अवस्था में पहुँच गये थे। प्रभु को उनके प्राण बचाने के लिये कोई तो मार्ग अपनाना ही था। तभी माता सीता को एक उपाय सूझा और उन्होंने अपने सुहाग के प्रतीक सिंदूर को औषधि के रूप में प्रयोग किया। माता सीता ने मरणासन्न अवस्था में पहुंचे हनुमान जी पर लाल सिंदूर को छिड़क दिया। सिंदूर छिड़कते ही चमत्कार हो गया। हनुमान जी पीड़ा मुक्त हो गए और उनकी उखड़ती हुई सांस वापस लौट आयी। इस प्रकार यह थी प्रयागराज के लेटे हुए हनुमान जी की कहानी, जिसमें माता सीता ने अपने चुटकी भर सिंदूर से हनुमान जी का इलाज किया। यह कहानी यहां के जनमानस में बस गई है। आज भी लोग यहां लेटे हुए हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाते हैं और अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति करते हैं। बताते हैं कि हनुमान जी की इस प्रकार लेटी हुई प्रतिमा लोगों को रास नहीं आयी। न जाने कितने भक्तों ने कितनी बार बजरंगबली की इस लेटी हुई प्रतिमा को खड़ा करने का प्रयास किया, लेकिन मूर्ती अपनी जगह से टस से मस न हुई। तब हार कर लोगों ने भगवान की इसी अवस्था की मूर्ति को आत्मसात कर लिया। मुग़ल शासन काल में लुटेरे औरंगज़ेब ने तो ग़ज़ब ही कर डाला। उसने सैकड़ों सैनिकों की सहायता से बजरंगबली की लेटी हुई प्रतिमा को यहाँ से हटाने का बहुत कुत्सित प्रयास किया लेकिन वह भी असफल ही रहा। -गंगा स्वंय करती हैं चरण वंदना वैसे तो हिन्दू धर्म में तरह-तरह की मान्यताएं हैं। इसी मान्यता की एक रोचक कड़ी के रूप में इस सिद्ध प्रतिमा का अभिषेक स्वयं मां गंगा करती हैं। हर साल सावन में लेटे हनुमान जी को स्नान कराने के बाद वो वापस लौट जाती हैं। कहा जाता है कि गंगा का जल स्तर तब तक बढ़ता है जब तक मां गंगा, हनुमान जी के चरण स्पर्श नहीं कर लेतीं। चरण स्पर्श के बाद नदी का स्तर अपने आप गिरने लगता है और सामान्य स्तिथि में आ जाता है। यहाँ नदियों के बहाव के कारण मंदिर का कुछ भी नुकसान नहीं होता है। -गंगा नदी के मंदिर में प्रवेश से ही कपाट हो जाते हैं बंद लेटे हनुमान मंदिर में जैसे ही गंगा का पानी भीतर प्रवेश करता है, वैसे ही हनुमान जी की विधिवत पूजा-अर्चना शुरू कर दी जाती है। इसके बाद मंदिर के कपाट को बंद कर दिया जाता है। गंगा नदी का पानी वापस लौट जाने के बाद ही कपाट खोले जाते हैं। इसके बाद मंदिर की साफ़-सफ़ाई की जाती है। और विधिवत पूजा-अर्चना के बाद आम दर्शनार्थियों के लिए मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं। -लेटे हुए हनुमान जी का यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर है जहां हनुमान जी अपने भक्तों को लेटे- लेटे ही आशीर्वाद दे रहे हैं। हनुमान जी के केवल दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है। लेटे हुए हनुमान जी की मूर्ती के दर्शन करने के लिए लोग दूर -दूर से यहाँ आते हैं।
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