महाभारत का युद्ध, अहंकार का युद्ध था। 18 दिनों तक चलने वाले इस युद्ध ने सिर्फ़ विनाश किया। कौरवों और पांडवों के बीच हुए इस युद्ध में कई निर्दोष लोग भी मारे गए। उसी में से एक था दुर्योधन का वह भाई जो हमेशा दुर्योधन के विचारों का विरोध करता था। उसका नाम था विकर्ण। विकर्ण, धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक था। जो महारथी होने के साथ-साथ न्यायप्रिय और विद्वान व्यक्ति भी था। द्रौपदी स्वयंवर में यह उपस्थित था और द्रौपदी चीरहरण के समय, विदुर की तरह इसने भी इस पापकर्म के विरोध में घृणा प्रकट की थी। जब महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ तो विकर्ण ने भाई धर्म का पालन करते हुए कौरवों की तरफ़ से पांडवों से युद्ध किया। शकुनि के कहने पर कौरवों और पांडवों के बीच जुए का खेल आरंभ हुआ। चौसर के उस खेल में युधिष्ठिर ने सब कुछ दांव पर लगा दिया। और जब उनके पास कुछ भी शेष नहीं बचा तो अंत में उन्होंने द्रौपदी को ही दांव पर लगा दिया। परिणाम स्वरुप युधिष्ठिर, द्रौपदी को भी जुए में हार गए, जिसके बाद द्रौपदी को सभा में बुलाया गया। दरबार में जब सभी लोग सिर झुका कर इस अत्याचार को देख रहे थे, तब कौरवों की तरफ़ से विकर्ण ही वह व्यक्ति था जिसने द्रौपदी को सभा में बुलाने का विरोध किया था। जबकि इस सभा में राजा धृतराष्ट्र, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कुलगुरु कृपाचार्य भी उपस्थित थे। -दुर्योधन और दुशासन का किया विरोध दरबार में जब सभी मूक दर्शक बने हुए थे, तब विकर्ण ही था जिसने अपने भाई दुर्योधन और दुशासन के इस कृत्य की जमकर आलोचना की और अनुचित बताया। विकर्ण ने कहा कि आज अगर इस कृत्य को नहीं रोका गया तो भविष्य में इसके भयंकर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। अंत में विकर्ण की यह आशंका सच साबित हुई। -विकर्ण का वध करने के बाद भीम को हुआ था दुख महाभारत के युद्ध में जब भीम का सामना विकर्ण से हुआ तो पहले तो भीम, विकर्ण से युद्ध नहीं करना चाहते थे। तब विकर्ण ने भीम से कहा, कि कौरवों की हार होनी निश्चित है। लेकिन वो (भीम) सिर्फ़ अपना कर्तव्य निभा रहे हैं और कर्तव्य का पालन करने के कारण ही उन्हें युद्ध करना पड़ेगा। द्रौपदी के अपमान पर विकर्ण का कहना था कि उस समय जो उचित था उसने वही किया और हर अनुचित कार्य पर ऐसे ही प्रतिक्रिया देनी चाहिए। विकर्ण ने भीम से कहा, “आप परेशान न हों, शस्त्र उठाएं, यही धर्म कहता है।” इसके बाद भीम और विकर्ण के बीच भीषण युद्ध हुआ और अंत में भीम को न चाहते हुए भी विकर्ण का वध करना पड़ा। जिसके लिए भीम ने बहुत दुःख भी प्रकट किया।
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