एक समय की बात है, सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ होने को लेकर विवाद हो गया। सभी ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु, इंद्र देव के पास गए। लेकिन इंद्र देव भी निर्णय करने में असमर्थ थे, तो उन्होंने सभी ग्रहों को पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य के पास भेज दिया क्योंकि वह एक न्याय प्रिय राजा थे। सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और अपने विवाद के बारे में बताया। राजा विक्रमादित्य ने सोच विचार के बाद क्रमश: स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन बनवाए और उनको क्रम से रखवा दिया। उन्होंने सभी ग्रहों से उन पर बैठने को कहा और साथ ही यह शर्त रख दी, कि जो सबसे बाद में बैठेगा वह सबसे छोटा ग्रह होगा। लोहे का सिंहासन सबसे अंत में था, जिस वजह से शनि देव सबसे अंत में बैठे, जिस वजह से वे नाराज़ हो गए। उन्होंने राजा विक्रमादित्य से कहा, “तुमने जानबूझकर ऐसा किया है। तुम जानते नहीं हो कि जब शनि की दशा आती है तो वह ढाई से सात साल तक रहती है। शनि की दशा आने से बड़े से बड़े व्यक्ति का विनाश हो जाता है। शनि की साढ़ेसाती आई तो राम को वनवास हुआ और रावण पर शनि की महादशा आई और उसका सर्वनाश हो गया। अब तुम सावधान रहना।” कुछ समय बाद राजा विक्रमादित्य पर शनि की महादशा शुरू हो गई। तब शनि देव घोड़ों का व्यापारी बनकर उनके राज्य में आए। राजा विक्रमादित्य को पता चला कि एक सौदागर अच्छे घोड़े लेकर आया है, तो उन्होंने घोड़ों को ख़रीदने का आदेश दिया। एक दिन राजा विक्रमादित्य उनमें से एक घोड़े पर बैठे, तो वह उनको लेकर जंगल में भाग गया और ग़ायब हो गया। राजा विक्रमादित्य का बुरा समय शुरु हो गया। भूख प्यास से वे तड़प रहे थे, तब एक ग्वाले ने उन्हें पानी पिलाया, बदले में राजा ने उसे अपनी अंगूठी दे दी और फिर नगर की ओर चल दिए। वहां वे एक सेठ की दुकान पर आकर बैठ गए और अपने आपको उज्जैन नगर का रहने वाला तथा वीका नाम बताया। सेठ ने उन्हें पीने के लिए पानी दिया। उस दिन सेठ की अच्छी बिक्री हुई। उसने सोचा कि वीका के आने की वजह से ऐसा हुआ है और लालच में वीका को अपने घर ले गया और भोजन कराया। वहाँ राजा विक्रमादित्य ने देखा कि एक खूंटी पर हार टंगा है और खूंटी उसे निगल रही है। देखते ही देखते हार ग़ायब हो गया। हार चुराने के आरोप में सेठ ने वीका को कोतवाल से पकड़वा दिया। वहां के राजा ने वीका के हाथ-पैर कटवाकर नगर के बाहर छोड़ने का आदेश दिया। कुछ समय बीत गया और नगर के बाहर से एक तेली गुज़र रहा था। वीका को देखकर उसे वीका पर दया आई और वह वीका को बैलगाड़ी में बैठाकर आगे चल दिया। उस समय शनि की महादशा समाप्त हो गई। एक बार वीका वर्षा ऋतु में मल्हार गा रहा था, उस राज्य की राजकुमारी मनभावनी ने उसकी आवाज़ सुनी, तो उससे ही विवाह करने की ज़िद कर बैठी। हारकर राजा ने अपनी बेटी का विवाह वीका से कर दिया। एक रात शनि देव ने वीका को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा, “तुमने मुझे छोटा कहने का परिणाम देख लिया?” तब राजा विक्रमादित्य ने शनि देव से क्षमा मांगी और कहा कि उनके जैसा दुख किसी को न दें। तब शनि देव ने कहा कि जो उनकी कथा का श्रवण और व्रत करेगा, उसे शनि दशा में कोई दुख नहीं होगा। शनि देव ने राजा विक्रमादित्य के हाथ और पैर वापस कर दिए। जब सेठ को पता चला कि वीका तो राजा विक्रमादित्य हैं, तो उसने उनका आदर सत्कार अपने घर पर किया और अपनी बेटी श्रीकंवरी से उनका विवाह कर दिया। इसके बाद राजा विक्रमादित्य अपनी दोनों पत्नियों, मनभावनी एवं श्रीकंवरी के साथ अपने राज्य लौट आए, जहां पर उनका स्वागत किया गया। राजा विक्रमादित्य ने कहा कि उन्होंने शनि देव को छोटा बताया था, लेकिन वे तो सर्वश्रेष्ठ हैं। तब से राजा विक्रमादित्य के राज्य में शनि देव की पूजा और कथा रोज़ होने लगी।
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