आदि शक्ति जगदंबा का विकराल स्वरूप हैं मां काली। इनकी उपासना का अलग ही महत्व है। कहते हैं दुष्टों और राक्षसों के दमन के लिए ही देवी मां ने यह संहारक अवतार लिया था। मां कालरात्रि को शुभंकरी भी कहते हैं। संसार में व्याप्त दुष्टों और पापियों के हृदय में भय को जन्म देने वाली मां हैं मां कालरात्रि। मां काली शक्ति सम्प्रदाय की प्रमुख देवी हैं। इन्हें दुष्टों के संहार की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है। मां कालरात्रि से जुड़ी कहानी असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने कालरात्रि का अवतार लिया था। मां काली निरंतर संहार करती हुई विनाशलीला रच रही थीं। इनके भयंकर स्वरूप और उतपात से सृष्टि में हाहाकार मच गया था। ऐसे में मां काली को प्रत्यक्ष रूप में रोकने की शक्ति स्वयं आदिदेव महादेव में भी नहीं थी। तभी देवताओं के अनुरोध पर महाकाली के क्रोध को शांत करने के लिए शिव ने उनकी राह में लेटने की युक्ति लगाई थी, ताकि चराचर ब्रह्माण्ड के स्वामी और अपने पति परमेश्वर को अपने पांव के नीचे पाकर देवी शांत हों और अपने मूल रूप में वापस आएं। मां काली की महिमा शक्ति का महानतम स्वरुप महाविद्याओं का होता है। दस महाविद्याओं के स्वरुपों में 'मां काली' प्रथम स्थान पर हैं। शुम्भ-निशुम्भ के वध के समय मां काली का रंग काला पड़ गया। मां काली के शरीर से निकले तेज पुंज से उनका रंग काला हो गया। इनकी उपासना से शत्रु, भय, दुर्घटना और तंत्र-मंत्र के प्रभावों का समूल नाश हो जाता है। मां काली अपने भक्तों की रक्षा करते हुए उन्हें आरोग्य का वरदान देती हैं। मां काली की पूजा के नियम मां काली की पूजा दो प्रकार से होती है। पहली सामान्य पूजा और दूसरी तंत्र पूजा। सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है, लेकिन तंत्र पूजा बिना गुरू के संरक्षण और निर्देशों के नहीं की जा सकती। मां काली की उपासना का सबसे उपयुक्त समय मध्य रात्रि का होता है। इनकी उपासना में लाल और काली वस्तुओं का विशेष महत्व होता है। शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिए मां काली की उपासना अमोघ है। किसी गलत उद्देश्य से मां काली की उपासना कतई नहीं करनी चाहिए। तो आप भी इन नियमों को ध्यान में रखकर ही शक्ति के इस स्वरूप की आराधना कीजिए औऱ सत्कर्म की राह पर चलने की कोशिश कीजिए।
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