भगवान शिव को ‘देवों के देव’ कहा जाता है। महादेव का एक रूप ताडंव करते नटराज का है, तो दूसरा रूप महान महायोगी का है। ये दोनों ही रूप रहस्यों से भरे हैं, लेकिन शिव जी को भोलेनाथ भी कहा जाता है। जहां एक साथ इतने सारे रंग हों, तो फिर क्यों न अपनी ज़िन्दगी में इन रंगों से प्रेरणा लें ? भगवान शिव के जीवन से जुड़े कुछ सबक इस प्रकार हैं: 1. बुराई को ख़त्म करना: ब्रह्मा जी को उत्पत्ति के लिए, भगवान विष्णु को रचना के लिए और महादेव को विनाश के लिए जाना जाता है। भगवान शिव का यह रूप आपको डराने वाला लग सकता है लेकिन किसी बुराई का ख़त्म होना बेहद ज़रूरी होता है, और भगवान शिव इसी के लिए जाने जाते हैं। 2. शांत रहकर स्वयं पर नियंत्रण रखना: भगवान शिव से बड़ा कोई योगी नहीं हुआ। किसी परिस्थिति से स्वयं को दूर रखते हुए उस पर पकड़ रखना आसान नहीं होता है। महादेव एक बार ध्यान में बैठ जाएं तो दुनिया इधर से उधर हो सकती है लेकिन उनका ध्यान कोई भंग नहीं कर सकता। शिव जी का यह ध्यान हमें जीवन की चीज़ों पर नियंत्रण रखना सिखाता है। 3. नकारात्मक चीज़ों को भी सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना: समुद्र मंथन से जब विष बाहर आया तो सभी ने क़दम पीछे खींच लिए थे, क्योंकि विष कोई नहीं पी सकता था। ऐसे में महादेव ने स्वयं विष (हलाहल) पिया और उन्हें नीलकंठ नाम दिया गया। इस घटना से बहुत बड़ा सबक मिलता है कि हम भी जीवन में आने वाली नकारात्मक (निगेटिव) चीज़ों को अपने अंदर रख लें, लेकिन उसका असर न ख़ुद पर हावी होने दें और न ही दूसरों पर। 4. जीवनसाथी के प्रति सम्मान: शिव जी का यह रूप जगज़ाहिर है। हिंदू मान्यताओं के हिसाब से निपुण जीवनसाथी (पेरफ़ेक्ट पार्टनर) महादेव को ही माना जाता है। अगर माता पार्वती ने उन्हें मनाने के लिए सालों की तपस्या की है तो दूसरी ओर शिव जी ने उन्हें अर्धांगिनी बनाया है। तभी तो 33 करोड़ देवताओं में शिव जी को ही अर्धनारीश्वर कहा जाता है। 5. हर समय समान भाव रखना: महादेव का संपूर्ण रूप देखकर यह संदेश मिलता है कि हम जिन चीज़ों को अपने आस-पास देख भी नहीं सकते, उन चीज़ों को महादेव ने बड़ी आसानी से अपनाया है। तभी तो उनकी शादी पर भूतों की मंडली पहुंची थी। शरीर में भभूत लगाए भोलेनाथ के गले में सांप लिपटा होता है। बुराई किसी में नहीं होती, बस एक बार आपको उसे अपनाना होता है। 6. तीसरी आंख का खुलना: शिव जी को त्रयंबक भी कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ़ भौतिक चीज़ों को देख सकती हैं। लेकिन भीतर की ओर देखने के बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। इसलिए बनी बनाई चीजों पर चलने से पहले स्वयं उनके बारे में सोचें और समझें। 7. अपनी राह चुनना: शिव जी की जीवन शैली हो या उनका कोई अवतार, वे हर रूप में बिल्कुल अलग हैं। फिर वो रूप तांडव करते हुए नटराज का हो, विष पीने वाले नीलकंठ, अर्धनारीश्वर, या फिर सबसे पहले प्रसन्न होने वाले भोलेनाथ का, वे हर रूप में जीवन को सही राह देते हैं।
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