हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी व्रत का बहुत महत्व है। वर्ष में 24 एकादशी आती हैं, किंतु इन सब एकादशियों में सबसे फलदाई ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को माना जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति पूरे साल एकादशी के व्रत नहीं रख पाता है, तो वह श्रद्धालु निर्जला एकादशी का व्रत रख कर साल की 24 एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त कर सकता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर और अर्जुन को एकादशी व्रत के बारें में बताया था। इस साल निर्जला एकादशी व्रत 10 जून, दिन शुक्रवार को रखा जाएगा। निर्जला एकादशी के व्रत में पानी भी ग्रहण नहीं किया जाता है। इस दिन बना जल पिए व्रत रखा जाता है। इसलिए इसे निर्जला एकादशी व्रत कहा जाता है। आइए जानते हैं कि क्यों मनाई जाती है निर्जला एकादशी और इस व्रत को करने से किस फल की प्राप्ति होती है? क्यों मनाई जाती है निर्जला एकादशी हिंदू मान्यताओं के अनुसार एक बार की बात है, जब वेदों के रचयिता वेदव्यास जी पांडवों के गृह कुशलक्षेम के लिए पधारे। तब महाबली भीम ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। लेकिन वेदव्यास जी ने अपने तपोबल से भीम की व्यथा जान ली। उस समय वेदव्यास जी ने उनसे पूछा कि, “हे महाबली, तुम्हारे मन में कैसे विचार उमड़ रहे हैं? क्यों चिंतित दिख रहे हो?” तब महाबली भीम ने वेदव्यास जी से अपने मन की व्यथा सुनाई। उन्होंने कहा कि, “हे पितामह, आप तो सर्वज्ञानी हैं। आप तो जानते हैं कि घर में सभी लोग एकादशी का व्रत करते हैं। लेकिन मैं नहीं कर पाता हूं, क्योंकि मैं भूखा नहीं रह सकता। मुझे कोई ऐसी व्रत-विधि बताएं, जिसे करने से मुझे सभी एकादशियों के समतुल्य फल की प्राप्ति हो।” उस समय वेदव्यास जी ने भीम से कहा कि, “हे महाबली, तुम्हें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। तुम ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली निर्जला एकादशी का व्रत कर, सभी सभी एकादशियों का पुण्य-फल प्राप्त कर सकते हो।" फिर भीमसेन ने निर्जला एकादशी का व्रत रखा और उन्हें सभी एकादशियों के बराबर पुण्य-फल प्राप्त भी हुआ। क्या मिलता है इस एकादशी के फल के रूप में? ऐसी मान्यता है कि निर्जला एकादशी व्रत सभी तीर्थों में स्नान करने के समान होता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी व्रत रखने से इंसान सभी पापों से मुक्ति पा सकता है। यह भी मान्यता है कि इस व्रत के रखने से मुनष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जीवन से सभी दुख-कष्ट दूर हो जाते हैं। कहते हैं कि इस व्रत को रखने से मृत्यु भी व्यक्ति के समीप नहीं आती है। इस व्रत में गोदान, वस्त्र दान, फल व भोजन दान का काफी महत्व होता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को भोज कराना भी शुभ माना जाता है।
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