सावन के महीने में हर तरफ भगवान शिव का ही नाम सुनाई देता है। यह महीना भगवान शिव को सबसे प्रिय है इसलिए तो सावन के पूरे माह, खासकर सावन के सोमवार के दिन पूर्ण श्रद्धा के साथ पूजा करने से वह अति प्रसन्न होते हैं। शिवमहापुराण में लिखा है कि भोलेनाथ की पूजा में बेलपत्र का बहुत महत्त्व है। अगर पूजा में बेलपत्र नहीं है तो पूजा अधूरी मानी जाती है। वैसे तो शिवजी को दूध, दही, शहद, देसी घी और फूल चढ़ाया जाता है. अगर आप इन सबकी जगह सिर्फ एक बेलपत्र चढ़ा दें तो पूजा का पूर्ण फल मिलता है। भगवान शंकर और देवी पार्वती को बेलपत्र चढ़ाने का विशेष महत्त्व है। महादेव एक बेलपत्र चढ़ाने पर भी प्रसन्न हो जाते है, इसलिए उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है। बेल का पेड़ बहुत ही पवित्र होता है इसलिए इसे शिवद्रुम भी कहा जाता है। बेल का पेड़ संपन्नता का प्रतीक और समृद्धि देने वाला है। कैसे शुरू हुई बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा : जब समुद्र मंथन से निकले विष को शिवजी ने कंठ में धारण किया तब सभी देवी देवताओं ने बेलपत्र शिवजी को खिलाना शुरू कर दिया, क्योंकि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है। बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत होने लगी और तभी से शिवजी पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा चल पड़ी। सावन में बेल स्नान: श्रावण मास में हर दिन पानी में बेलपत्र डालकर नहाना चाहिए। इस शिवमय जल से शारीरिक शुद्धि तो होती ही है साथ ही जाने-अनजाने में हुए पाप भी खत्म हो जाते हैं। धर्मग्रंथ और आयुर्वेद के जानकारों का कहना है कि बेलपत्र वाले पानी से नहाने पर बीमारियां नहीं होती हैं और उम्र भी बढ़ती है। बेलपत्र तोड़ने के नियम: बेलपत्र को कभी भी चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति और सोमवार को तथा दोपहर के बाद नहीं तोड़ना चाहिए। यह भगवान शिव की नाराजगी का कारण बन सकती है। इसलिए इन तिथियों को बेलपत्र तोड़ने से बचें। आप रविवार को बेलपत्र तोड़कर रख लें और सोमवार के दिन शिवलिंग पर चढ़ाएं।
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