हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पहली पूर्णिमा के बाद और दूसरी अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का माना जाता है। वैसे तो एकादशी माह में दो बार आती है, लेकिन श्रावण माह में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी मनाई जाती है। इस एकादशी का व्रत साल में दो बार रखा जाता है। एक पुत्रदा एकादशी, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकदाशी के दिन आती है। वहीं, दूसरी पुत्रता एकादशी, सावन माह की शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन आती है। इस साल 8 अगस्त 2022 को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा। पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती है और संतान के सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं। तो आइए जानते हैं कि क्या है पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि.... शुभ मुहूर्त श्रावण पुत्रदा एकादशी, सोमवार, 08 अगस्त, 2022 को है। श्रावण पुत्रदा एकादशी तिथि 07 अगस्त, 2022 सुबह 11 बजकर 50 मिनट से शुरु होकर, 08 अगस्त, 2022 को रात 9 बजे समाप्त होगी। व्रत पारण समय – 9 अगस्त, 2022 को सुबह 6 बजकर 7 मिनट से सुबह 8 बजकर 42 मिनट तक रहेगा... माना जाता है कि पुत्र-सुख की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है। जिन लोगों को कोई पुत्र नहीं होता है, उनके लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस एकादशी के व्रत को रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। पुत्रदा एकादशी पूजा विधि एकादशी से एक दिन पहले से ही सात्विक भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और नहाकर साफ कपड़े पहनें। उसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के आगे दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु की पूजा करते समय तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल जरूर करें। तुलसी, भगवान शिव को अति प्रिय है, इसलिए भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी को जरूर शामिल किया जाता है। 08 अगस्त 2022 को पुत्रदा एकादशी के साथ ही सावन का सोमवार भी है। ऐसे में मंदिर में जाकर भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही शिवलिंग पर भी जल जरूर चढ़ाएं। व्रत कथा श्री पद्मपुराण के अनुसार, द्वापर युग में महिष्मती पुरी का राजा महीजित बड़ा ही शांति और धर्म प्रिय था। लेकिन उसका कोई पुत्र नहीं था। राजा के शुभचिंतकों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई। महामुनि ने बताया कि, “राजा ने अपने पिछले जन्म में कुछ अत्याचार किए थे। एक बार एकादशी के दिन दोपहर के समय वो एक जलाशय पर पहुंचे। वहां एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया और स्वयं पानी पीने लगे। राजा का ऐसा करना धर्म के विपरीत था। पूर्व जन्म के कुछ पुण्य कर्मों के कारण वो अगले जन्म में राजा तो बने, लेकिन उस एक पाप के कारण अब तक संतान विहीन हैं।” महामुनि ने आगे बताया कि, “यदि राजा के सभी शुभचिंतक, श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधिपूर्वक व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, तो उन्हें निश्चय ही संतान की प्राप्ति होगी।” महामुनि के कहने पर प्रजा के साथ-साथ राजा ने भी यह व्रत रखा। कुछ महीनों के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। मान्यता है कि तब से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाने लगा। पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति तथा संतान की समस्याओं के निवारण के लिए किया जाने वाला व्रत है। मान्यता है कि जो भी इस व्रत को पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ करता है, उसे संतान सुख अवश्य मिलता है।
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