भगवान शिव की बात जहाँ आती है, वहां शिवलिंग की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। शिवलिंग, भगवान शिव का प्रतिमाविहीन चिह्न माना जाता है। शिवलिंगों में बारह लिंगों को ज्योतिर्लिंग कहा गया है, जिनके दर्शन का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। इन सभी ज्योतिर्लिंगों से शिव जी की रोचक कथाएं जुड़ी हुई हैं। ऐसे ही झारखंड के देवघर में स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है पवित्र बैद्यनाथ धाम शिवलिंग। हिंदू धर्म में 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का अपना अलग ही महत्व है। मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह लिंग रावण की भक्ति का प्रतीक है। इस जगह को लोग बाबा बैजनाथ धाम के नाम से भी जानते हैं। सावन में इस मंदिर का खास महत्व है। सावन के पूरे महीने में दूर-दूर से लोग कांवड़ लेकर बाबा के धाम पहुंचते हैं और गंगा जल चढ़ाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बाबा बैद्यनाथ धाम की कथा भगवान शिव के भक्त रावण और बाबा बैजनाथ की कहानी बड़ी निराली है। पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण, भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहा था। वह, एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था। 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10वां सिर काटने ही वाला था तो भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वर मांगने को कहा। तब रावण ने कामना लिंग को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया। रावण के पास सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी ही, साथ ही उसने कई देवता, यक्ष और गंधर्वों को कैद करके भी लंका में रखा हुआ था। इस वजह से रावण ने यह इच्छा जताई कि भगवान शिव कैलाश को छोड़ लंका में रहें। महादेव ने उसकी इस मनोकामना को पूरा तो किया पर साथ ही एक शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि, अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कहीं भी रखा तो मैं फिर वहीं स्थापित हो जाऊंगा और नहीं उठूंगा। रावण ने शर्त मान ली। इधर भगवान शिव की कैलाश छोड़ने की बात सुनते ही सभी देवता चिंतित हो गए। इस समस्या के समाधान के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने लीला रची। भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास लघुशंका लगी। कहते हैं कि रावण, बैजू नाम के एक ग्वाले को शिवलिंग देकर लघुशंका करने चला गया। उस ग्वाले के रूप में स्वयं भगवान विष्णु ही वहां उपस्थित थे। पौराणिक धर्म ग्रंथों के मुताबिक रावण कई घंटों तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में हैं। इधर भगवान विष्णु ने शिवलिंग को धरती पर रखकर उसे स्थापित कर दिया। जब रावण लघुशंका से लौटकर आया तो लाख कोशिशों के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब उसे भी भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह शिवलिंग पर अपना अंगूठा गढ़ाकर चला गया। उसके बाद ब्रह्मा जी, विष्णु जी आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिवजी के दर्शन होते ही सभी देवी-देवताओं ने उनकी स्तुति की और वापस स्वर्ग को चले गए। तभी से महादेव कामना लिंग के रूप में देवघर में विराजते हैं।
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