द्वारका : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को पूरे देश में धूमधाम से मनाया गया। श्रीकृष्ण नगरी द्वारका के द्वारकाधीश मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के लिए दिव्य पोशाक व मुकुट तैयार किया गया। इस पोशाक की बात करें यह दस मीटर के कपड़े से तैयार की गई थी जिससे दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य से मँगवाया गया था। कर्नाटक के दावणगिरी से पोशाक के लिए सिल्क मँगवाया गया था। कपड़े पर सिलाई और कढ़ाई का काम द्वारका में ही किया गया था। इस पोशाक की डिज़ाइन मंदिर के पुजारी वैभवभाई ने सुझाया था। बात करे कपड़े पर हुए जरदोजी वर्क की तो यह सूरत में हुआ था। जरदोजी वर्क को बहुत ही ख़ास तरीक़े से तैयार किया गया था। इस वर्क में सोने और चाँदी के तारों का इस्तेमाल हुआ था और इन तारों के बीच हीरे भी जड़े हुए थे जिससे इसके ख़ूबसूरती मनमोह रही थी। इस पोशाक की एक और ख़ास बात रही की इसपे फूल, पान और बेल का भी डिज़ाइन बनाया हुआ था। इस पोशाक के अलावे भगवान की मुकुट भी चर्चा का विषय बनी हुई थी। पन्ना, पुखराज और हीरे से सुसज्जित मुकुट तैयार किया गया था। इस मुकुट में भगवान सूर्य और चंद्रमा की डिज़ाइन भी करी गई थी। जन्माष्टमी के अवसर पर फुलेर मुकुट बनवाया गया था जिसका आकार 9x9 था और यह पूरा मुकुट सोने से बनाया गया था। मुकुट के बनाने में 22 कैरट सोने का उपयोग किया गया था। इस मुकुट के जरदोजी का काम राजकोट में पूरा किया गया था। इस मुकुट में जड़ित रियल स्टोन राजस्थान के जयपुर से मँगवाया गया था और यह छर हिस्से में तैयार हुआ था। इस पूरे पोशाक को तैयार करने में 6 महीने का वक़्त लग गया जिसे 50 कारीगरों ने दिन रात मेहनत कर तैयार किया। राजकोट में रहने वाले पटडिया ज्वेलर्स ने भगवान का यह मुकुट बनाया और इस परिवार के द्वारा दो पीढ़ियों से द्वारकाधीश के आभूषण को बनाया जा रहा है। जन्माष्टमी का पर्व यहाँ बहुत ख़ास तरीक़े से मनाया जाता है और एक अनुमान के मुताबिक़ जन्माष्टमी के दिन करीब डेढ़ लाख श्रद्धालु श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को मनाने द्वारका पहुँचते हैं। यह मंदिर भारत का एकमात्र मंदिर है जहाँ 52 गज का ध्वजा दिन में तीन बार चढ़ाई जाती है।
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