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क्यों कहा जाता है कलियुग के भगवान, ‘श्री खाटू श्याम’ को हारे का सहारा?

"जो भी लेता है सच्चे मन से नाम, उस हारे का सहारा बनते हैं बाबा खाटू श्याम!" जैसा कि हम सभी जानते हैं कि लोगों की खाटू श्याम या यूं कहें कि खाटू नरेश में अत्यधिक श्रद्धा है। परंतु क्या आप जानते हैं कि कौन हैं खाटू श्याम ? कैसे हुआ उनका प्राकट्य? और कलियुग में क्यों हो रहा है उनका बोल बाला ? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं बाबा खाटू श्याम से जुड़ी रोचक कहानी...

धार्मिक धर्म ग्रंथों में एक कथा आती है कि महाभारत काल से ही खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक था। बर्बरीक, महाबली भीम और हिडिम्बा के पौत्र एवं घटोत्कच के पुत्र थे। वे, अपने दादाजी की ही तरह अति बलशाली थे और उनका शरीर भी विशालकाय था।

बर्बरीक का संकल्प

पौराणिक धर्म ग्रंथों में बताते हैं कि जब महाभारत का युद्ध शुरु हुआ, तब बर्बरीक की भी युद्ध देखने की इच्छा हुई। जिसके कारण, वे, कुरुक्षेत्र की ओर चल दिए तथा उन्होंने यह संकल्प किया कि अंत में जो भी युद्ध हार रहा होगा, वे, उसकी तरफ से युद्ध में हिस्सा लेंगे। जब यह बात, श्रीकृष्ण को पता लगी तो वे परेशान हो उठे, क्योंकि वे युद्ध के परिणाम से अवगत थे। वे जानते थे कि जीत पांडवों की ही होगी परंतु वे, यह भी जानते थे कि अगर बर्बरीक ने युद्ध में हिस्सा लिया तो कौरव ही जीतेंगे।

श्रीकृष्ण ने बनाया ब्राह्मण का रूप

श्रीकृष्ण ने एक युक्ति अपनाई और वे, एक ब्राह्मण का भेस बनाकर, बर्बरीक के पास पहुंचे। बर्बरीक ने उन्हें प्रणाम किया। इस पर कृष्ण बोले, “हे बलशाली पुरुष ! आप कौन हैं और इतनी जल्दी में कहां प्रस्थान कर रहें हैं? बर्बरीक ने उत्तर देते हुए कहा, “ब्राह्मण देव! मैं महाबली भीम का पौत्र, बर्बरीक हूं और मैं कुरुक्षेत्र जा रहा हूं। महाभारत का युद्ध देखने की मेरी बड़ी इच्छा है।”तब इस पर श्रीकृष्ण बोले, “सिर्फ देखने की इच्छा? आप जैसा बलवान सिर्फ युद्ध देखेगा, लड़ेगा नहीं?” बर्बरीक मुस्कराकर बोले, “नाथ! मैं युद्ध में भाग भी लूगा परंतु पहले मैं देखूंगा कि कौन हार रहा है, अंत में उसकी तरफ से युद्ध करके मैं युद्ध का परिणाम पलट दूंगा।“ श्रीकृष्ण ने कहा, “आपको अपने बल पर इतना गुरुर है! आप बलशाली जरूर मालूम पड़ते हैं परंतु जहां भीष्म, कर्ण, अर्जुन, युधिष्ठिर और भीम जैसे वीर मौजूद हों, वहां आप क्या कर पाएंगे? मुझे आपकी बातों पर यकीन नहीं।“ इस पर बर्बरीक ने उत्तर दिया, “भूदेव! आप चाहें तो मेरे बल की परीक्षा ले सकते हैं।“

यह सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कराए क्योंकि वे इसी क्षण का तो इंतजार कर रहे थे। वे बोले, “परंतु अगर आप हारे तो जो मैं मांगूंगा, आपको वही वर मुझे देना होगा।“ बर्बरीक बोले, “जैसा आप कहें ब्राह्मण श्रेष्ठ।“ श्रीकृष्ण ने पास ही में खड़े एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा कर कहा, “आपको इस वृक्ष के सारे पत्ते एक ही बाण से भेदने होंगे, अगर एक भी बचा तो आप हार जाएंगे।“

जब कन्हैया ने छला बर्बरीक को

श्रीकृष्ण की बात सुनते ही बर्बरीक की आँखों में एक चमक सी आई और उन्होंने अपने तरकश से एक बाण निकाल, धनुष पर लगाते हुए आख बंदकर, मंत्र पढ़ा और बाण चला दिया। उस दिव्य बाण ने कुछ ही क्षणों में उस पेड़ पर लगे सारे पत्ते भेद दिए और उसके बाद कन्हैया के एक पैर के चारों तरफ घूमकर, निरस्त हो, गिर गया। यह देख, बर्बरीक बोले, “मैं जीत गया!” इस पर कन्हैया मुस्कुराए और अपना पैर हटाते हुए बोले, “शायद नहीं।“

उन्होंने, उस पेड़ का एक पत्ता अपने एक पैर के नीचे दबा लिया था, जिसे वह बाण भेद नहीं पाया। यह देख, बर्बरीक निराश होकर बोले, ”मांगिए भूदेव, आप क्या मांगते हैं?” श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, “मुझे अपना शीश काटकर दे दीजिए।“

शीश के दानी खाटू श्याम

एक क्षण भी सोचे बिना, बर्बरीक ने अपना शीश काटकर, कन्हैया के चरणों में रख दिया। यह देख, कन्हैया, बर्बरीक पर बहुत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक रूप में आकर, उन्हें दर्शन दिया और कहा, “बर्बरीक! मैं, तुम्हारे पराक्रम से बहुत प्रसन्न हूं। अतः तुम्हें वर देता हूं कि कलियुग में तुम, मेरे ही नाम से पूजे जाओगे और जो तुम्हारी शरण में आकर सच्चे मन से कुछ भी मांगेगा, उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण होंगी और तुम्हारा यह शीश का दान सदैव याद रखा जाएगा।“

इसी वरदान के चलते, भक्त यह मानते हैं कि हारे के सहारे श्री खाटू श्याम बाबा से सच्चे मन से जो भी मांगो, वे अवश्य प्रदान करते हैं।