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भारत में हिन्दू धर्म ग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों और धर्मशास्त्रों आदि के अनुसार प्रत्येक माह कोई ना कोई उपवास, कोई ना कोई त्योहार अथवा कोई ना कोई संस्कार आदि आता ही रहता है. लेकिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को जो उपवास किया जाता है उसका सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक महत्व होता है. दरसअल इस दिन को करवा चौथ का व्रत किया जाता है. करवा चौथ का पर्व इस बार 4 नवंबर 2020 को मनाया जाएगा. करवा चौथ व्रत के दौरान भगवान शिव, माता पार्वती, और भगवान गणेश और भगवान कार्तिक की पूजा की जाती है. मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत रखने से दांपत्य जीवन में खुशी आती है. सुहागिन स्त्रियां करवा चौथ का व्रत रखकर पति की लंबी उम्र की कामना करती है.
करवा चौथ का व्रत कैसे रखा जाता है
करवा चौथ का व्रत सभी व्रतों में कठिन माना गया है. करवा चौथ का व्रत निर्जला व्रत की श्रेणी में आता है यानि इस दिन सुहागिन स्त्रियां पूरे दिन अन्न और जल का त्याग कर इस व्रत को पूर्ण करती हैं.
चांद को देखने के बाद तोड़ा जाता है व्रत
करवा चौथ का व्रत रात्रि में चंद्रमा के निकलने के बाद ही तोड़ा जाता है. इस दौरान चंद्रमा को जल चढ़ाया जाता है. करवा चौथ के पूजन के दौरान स्त्रियां छलनी से पति का चेहरा देखकर पति के हाथ से भोजन ग्रहण करती हैं. करवा चौथ का व्रत उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि राज्यो में बड़ी ही श्रद्धाभाव से मनाया जाता है.
करवा चौथ पूजा
करवा चौथ के व्रत में विधि पूर्वक पूजन करना चाहिए. इस दिन संपूर्ण शिव परिवार के साथ साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है. पुष्प, मिष्ठान और घर में बने भोजन और पकवानों का भोग लगया जाता है. इसके बाद व्रत की कथा का पाठ किया जाता है.
चांद को देखने के बाद तोड़ा जाता है व्रत
करवा चौथ का व्रत रात्रि में चंद्रमा के निकलने के बाद ही तोड़ा जाता है. इस दौरान चंद्रमा को जल चढ़ाया जाता है. करवा चौथ के पूजन के दौरान स्त्रियां छलनी से पति का चेहरा देखकर पति के हाथ से भोजन ग्रहण करती हैं. करवा चौथ का व्रत उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि राज्यो में बड़ी ही श्रद्धाभाव से मनाया जाता है.
करवा चौथ पूजा
करवा चौथ के व्रत में विधि पूर्वक पूजन करना चाहिए. इस दिन संपूर्ण शिव परिवार के साथ साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है. पुष्प, मिष्ठान और घर में बने भोजन और पकवानों का भोग लगया जाता है. इसके बाद व्रत की कथा का पाठ किया जाता है.