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हरिद्वार कुंभ में दंडी बाड़ा पहली बार करेगा शाही स्नान

अगर आप साधु-संन्यासियों के सबसे पुराने स्वरूप का दर्शन करना चहते हैं तो आपको हरिद्वार कुंभ में जरूर आना चाहिए। इस बार के महाकुंभ में दंडी स्वामी के साधुओं को पहली बार दशनाम संन्यासियों के अखाड़ों के साथ शाही स्नान करने हरकी पैड़ी जाएंगे।
गौरतलब है कि दंडी परंपरा की शुरुआत आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। उन्होंने न केवल ढाई हजार साल पहले न सिर्फ स्वयं दंड धारण किया था बल्कि शंकराचार्यों की चार पीठों पर आसीन होने वाले अपने प्रतिनिधि शंकराचार्यों के लिए भी दंड अनिवार्य कर दिया था। परंपरा की शुरुआत इतने पहले होेने के बाद भी साधुओं के मूल स्वरूप दंडी बाड़े को शाही स्नानों में शामिल नहीं किया गया।

संन्यासियों के दंड धारण की परंपरा का उल्लेख मनुस्मृति में है। वर्तमान में नागा संन्यासी अखाड़ों के तमाम साधु उसी परंपरा से आए हैं। चारों पीठों के शंकराचार्यों के लिए भी दंड धारण अनिवार्य है। कुंभ पर संन्यास दीक्षा के बाद दंड धारण कराया जाता है।

मनुस्मृति के अनुसार ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ अवस्था के बाद दंडी संन्यासी बना जा सकता है। दंडी साधु के लिए नियम है कि वह 12 वर्ष बाद दंड फेंक दें और परमहंस हो जाए। हरिद्वार में दंडी स्वामियों के निवास के लिए कई स्थायी दंडी बाड़े हैं। दंडी साधु के लिए पांच घर भिक्षा का नियम है।

स्नान से दंडियों को जोड़ने का काम संन्यासियों का सबसे बड़ा जूना अखाड़ा प्रारंभ कर रहा है। किन्नर अखाड़े की तरह दंडी आश्रमों और बाड़ों के महात्मा उन्हें अपने साथ दोनों स्नान कराएंगे। महिला संतों का माईवाड़ा और नागाओं के कर्मकांड कराने वाला गूदड़ अखाड़ा भी जूना के साथ शाही स्नान करता आया है।