फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। होली से कुछ दिन पहले आने वाली, ‘उत्साह व उमंग की प्रतीक’, इस एकादशी को ‘रंग भरी एकादशी’ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान नारायण की पूजा के साथ, आंवले के पेड़ की भी पूजा होती है। साथ ही आंवले का फल भगवान नारायण को अर्पित करने और स्वयं ग्रहण करने का भी नियम होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आंवले के पूजन के कारण इस एकादशी को ‘आंवला एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस बार आंवला एकादशी 14 मार्च को है। जानिए आंवला एकादशी की पूजा विधि और कथा के बारे में... आंवला एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नानादि से निवृत्त होने के बाद, भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें। इसके बाद आंवले के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु की तस्वीर चौकी पर स्थापित करें और उनकी विधिवत पूजा करें। उन्हें रोली, चंदन, अक्षत, फूल, धूप और नैवेद्य अर्पित करें। यदि आंवले का पेड़ आस-पास नहीं है, तो घर के पूजा स्थान में ही नारायण की पूजा करें। लेकिन उन्हें आंवला ज़रूर अर्पित करें। इसके बाद आंवला एकादशी व्रत कथा पढ़ें या सुनें। सारा दिन निर्जल और निराहार रह कर या फिर फलाहार लेकर व्रत करें। द्वादशी को स्नान और पूजन के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और उसे अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान दें। इसके बाद व्रत खोलें। व्रत कथा पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी, भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए थे। एक बार ब्रह्मा जी ने स्वयं को जानने के लिए परब्रह्म की तपस्या करनी शुरू कर दी। उनकी भक्तिमय तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हो गए। नारायण को देखते ही ब्रह्मा जी के नेत्रों से अश्रुओं की धारा निकल पड़ी। उनके आंसू नारायण के चरणों पर गिर रहे थे। कहा जाता है कि वे आंसू, विष्णु जी के चरणों पर गिरने के बाद आंवले के पेड़ में तब्दील हो गए। इसके बाद श्री हरि ने कहा कि “आज से ये वृक्ष और इसका फल मुझे अत्यंत प्रिय होगा। जो भी भक्त आमलकी एकादशी पर इस वृक्ष की पूजा विधिवत तरीके से करेगा, वह साक्षात मेरी ही पूजा होगी। उसके सारे पाप कट जाएंगे और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होगा।” सर्वार्थ सिद्धि योग को अति शुभ योग माना जाता है। मान्यता है कि इस योग में किया गया कार्य सफल होता है। और साथ ही यह अन्य दोषों को भी ख़त्म करने का गुण रखता है। हालांकि आमलकी एकादशी के दिन होलाष्टक का प्रभाव रहेगा, ऐसे में आप इस दिन केवल पूजा पाठ ही करें और कोई शुभ या नया कार्य करने से बचें। आमलकी एकादशी शुभ मुहूर्त पंचांग के अनुसार आमलकी एकादशी तिथि 13 मार्च को सुबह 10 बज कर 21 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 14 मार्च को दोपहर 12 बज कर 05 मिनट तक मान्य होगी। उदया तिथि के हिसाब से यह व्रत 14 मार्च को रखा जाएगा। व्रत का पारण करने के लिए शुभ समय 15 मार्च को सुबह 06 बज कर 31 मिनट से लेकर सुबह 08 बज कर 55 मिनट तक रहेगा।
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