वेद कहते हैं कि जो जन्मा है, वह मरेगा अर्थात जो बना है, वह फना है. वेदों के अनुसार ईश्वर या परमात्मा अजन्मा, अप्रकट, निराकार, निर्गुण और निर्विकार है. अजन्मा का अर्थ जिसने कभी जन्म नहीं लिया और जो आगे भी जन्म नहीं लेगा. प्रकट अर्थात जो किसी भी गर्भ से उत्पन्न न होकर स्वयंभू प्रकट हो गया है और अप्रकट अर्थात जो स्वयंभू प्रकट भी नहीं है. निराकार अर्थात जिसका कोई आकार नहीं है, निर्गुण अर्थात जिसमें किसी भी प्रकार का कोई गुण नहीं है, निर्विकार अर्थात जिसमें किसी भी प्रकार का कोई विकार या दोष भी नहीं है. इसलिए भगवान शिव को स्वयंभू कहा जाता है. हालांकि भगवान शिव के जन्म के संबंध में एक कहानी प्रचलित है. एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच जमकर बहस हुई. दोनों खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करना चाह रहे थे. तभी एक रहस्यमयी खंभा दिखाई दिया. खंभे का ओर-छोर दिखाई नहीं पड़ रहा था. भगवान ब्रह्मा और विष्णु को एक आवाज सुनाई दी और उन्हें एक-दूसरे से मुकाबला करने की चुनौती दी गई. उन्हें खंभे का पहला और आखिरी छोर ढूंढने के लिए कहा गया. भगवान ब्रह्मा ने तुरंत एक पक्षी का रूप धारण किया और खंभे के ऊपरी हिस्से की खोज करने निकल पड़े. दूसरी तरफ भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण किया और खंभे के आखिरी छोर को ढूंढने निकल पड़े. दोनों ने बहुत प्रयास किए लेकिन असफल रहे. जब उन्होंने हार मान ली तो उन्होंने भगवान शिव को इंतजार करते हुए पाया. तब उन्हें एहसास हुआ कि ब्रह्माण्ड को एक सर्वोच्च शक्ति चला रही है जो भगवान शिव ही हैं. खंभा प्रतीक रूप में भगवान शिव के कभी न खत्म होने वाले स्वरूप को दर्शाता है. भगवान शिव के जन्म के विषय में इस कथा के अलावा भी कई कथाएं प्रचलित हैं. दरअसल भगवान शिव के 11 अवतार माने जाते हैं. इन अवतारों की कथाओं में रुद्रावतार की कथा काफी प्रचलित है. कूर्म पुराण के अनुसार जब सृष्टि को उत्पन्न करने में ब्रह्मा जी को कठिनाई होने लगी तो वह रोने लगे. ब्रह्मा जी के आंसुओं से भूत-प्रेतों का जन्म हुआ और मुख से रूद्र उत्पन्न हुए. रूद्र भगवान शिव के अंश और भूत-प्रेत उनके गण यानी सेवक माने जाते हैं. शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव को स्वयंभू माना गया है. शिव पुराण के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे तब उससे भगवान विष्णु पैदा हुए जबकि विष्णु पुराण के अनुसार शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं. संहारक कहे जाने वाले भगवान शिव ने एक बार देवों की रक्षा करने हेतु जहर पी लिया था और वह नीलकंठ कहलाए. भगवान शिव अगर अपने भक्तों पर प्रसन्न हो जाएं तो सारी मुरादें पूरी कर देते हैं. भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा की जाती है. जटाधारी शिव शंकर को प्रसन्न करने में किसी भी मनुष्य को कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है. उन्हें सच्ची श्रद्धा मात्र से ही प्रसन्न किया जा सकता है.
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