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सावन में कनखल के दक्षेश्वर मंदिर में विराजते हैं भोलेनाथ, जानिये क्या है कथा ?

उत्तराखंड में चार धाम के साथ-साथ कई प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। सावन का पावन महीना शुरू होने जा रहा है और मान्यता है कि इस दौरान महादेव कैलाश पर्वत से आकर हरिद्वार के कनखल में अपने ससुराल में निवास करते हैं। यहां पर दक्षेश्वर महादेव मंदिर है, जो कि सालों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह मंदिर एक मात्र ऐसा है, जहां भगवान शिव के साथ-साथ दक्ष प्रजापति की भी पूजा-अर्चना की जाती है। इस मंदिर का निर्माण 1810 में रानी धनकौर द्वारा करवाया गया है। मंदिर परिसर में मां गंगा का भी मंदिर है। सावन में हर दिन लाखों की संख्या में भक्तजन यहां दर्शन पूजन के लिए आते हैं।

 

क्या है पौराणिक कथा ?

 

भगवान भोलेनाथ का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से हुआ था, जिससे राजा दक्ष प्रसन्न नहीं थे। विवाह के बाद भी शिव जी ससुराल अधिक नहीं जाते थे। एक बार दक्ष ने कनखल में बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया । उधर, माता सती शिव जी के साथ  यज्ञ में जाने की जिद करने लगी। शिव जी को किसी अनहोनी के होने का आभास था इसलिए उन्होंने पार्वती को बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानीं । वह गईं जरूर लेकिन वहां शिव जी के लिए आसन नहीं पाया । साथ ही, शिव जी के प्रति राजा दक्ष ने अपमानजनक शब्दों का भी प्रयोग किया। यह सब देख माता सती को भगवान शिव की बात न मानने की ग्लानि हुई और उन्होंने उसी यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया।

 

शिव जी ने दक्ष को क्यों दिया जीवनदान ?

 

यह बात जब भगवान शिव को पता लगी तो उनके क्रोध का ठिकाना नहीं रहा भगवान शिव यज्ञस्थली में उपस्थित हो गए, माता सती का जला हुआ पार्थिव देख भगवान शिव के गुस्से का ज्वालामुखी राजा दक्ष पर फूट गया, जिसके कारण भगवान शिव ने उसका सिर काट दिया। उसके बाद भी भगवान शिव की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई और वो माता सती का जला हुआ पार्थिव लेकर सम्पूर्ण पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे । शिव जी की ये दशा विष्णुजी से देखी नहीं गई और उन्होंने सुदर्शन चक्र से एक-एक कर सती के श्रीअंग काटना शुरू कर दिया। पृथ्वी पर जिन 52 जगह श्रीअंग गिरे, वहां 52 शक्तिपीठों की स्थापना हुई।

 

खैर, जब काफी समय बाद देवों की प्रार्थना के कारण बाबा भोलेनाथ का क्रोध शांत हुआ, तब उनके पास ब्रह्मा जी पधारे। ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को सती के पुनर्जन्म के बारे में बताकर पहले तो प्रसन्न किया और फिर अपने पुत्र दक्ष के प्राणों की भीख मांगी, तब भोलेनाथ ने दक्ष के सिर की जगह एक बकरे का सिर लगा दिया और प्रजापति दक्ष को जीवनदान दिया।

 

यहां है स्वयंभू शिवलिंग

 

दक्ष ने भी उनसे क्षमा मांगी और सावन में कनखल में ही विराजने को कहा। इसीलिए शिव जी यहां राजा दक्ष के सम्मान में स्वयं-भू शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए और ये शिवालय दक्षेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सावन में जो भी भक्त शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करते हैं और बेलपत्र, पुष्प, तिल,चावल, दूध, दही, शहद और पंचगव्य से पूजन अर्चन करते हैं उनके सारे कष्ट दूर होते हैं और वे मोक्ष प्राप्त कर शिवलोक में वास करते हैं। इतना ही नहीं यहां पूजन से पितृ दोष से छुटकारा मिल जाता है और जीवन में चल रही परेशानियां दूर हो जाती है।

 

:- आस्था मिनाक्षी सिंह