हिंदू धर्म में पूजा या अनुष्ठान शुरू करने से पहले तिलक लगाकर मौली बांधने की परंपरा है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। मौली यानी सूत का लाल धागा जिसे रक्षासूत्र भी कहा जाता है। इसे मंत्रों के साथ कलाई पर बांधने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। वाराणसी के आयुर्वेद हॉस्पिटल के चिकित्सा अधिकारी वैद्य प्रशांत मिश्रा का कहना है कि मौली बांधने से शरीर के दोषों पर नियंत्रण रहता है।
धर्म शास्त्रों के जानकार काशी के पं. गणेश मिश्र का कहना है कि मौली बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है, जब सबसे पहले इंद्राणी ने इंद्र को फिर दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। इस लिए कलाई पर धागा बांधते समय इससे जुड़ा राजा बलि का मंत्र भी बोला जाता है। वेदों में भी रक्षासूत्र बांधने का विधान बताया है।
आयुर्वेद में कलाई पर मौली का महत्व
सुश्रुत संहित में बताया गया है कि सिर के बीच का हिस्सा और गुप्त स्थान का अगला हिस्सा मणि कहलाता है। वहीं, कलाई को मणिबंध कहा गया है। इस बारे में वैद्य प्रशांत मिश्र ने बताया कि मानसिक विकृति और मूत्र संबंधी बीमारियों से बचने के लिए मणिबंध यानी कलाई वाले हिस्से को बांधना चाहिए। आचार्य सुश्रुत ने अपने ग्रंथ में मर्म चिकित्सा में कलाई को भी शरीर का मर्म स्थान बताया है। यानी कलाई से शरीर की क्रियाओं को नियंत्रित किया जा सकता है। इस पर वैद्य मिश्र का कहना है कि जी मचलने पर या घबराहट होने पर एक हाथ की कलाई पर दूसरे हाथ की हथेली को गोल-गोल घुमाना चाहिए। इससे राहत मिलने लगती है।
मौली का अर्थ
मौली का शाब्दिक अर्थ है सबसे ऊपर। मौली का मतलब सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। कुछ ग्रंथों में इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी बताया गया है। मौली के भी प्रकार हैं। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।
- मौली कच्चे धागे यानी सूत से बनाई जाती है। जिसमें 3 रंग के धागे होते हैं। लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी-कभी यह 5 धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है। मौली के 3 धागे त्रिदेवों के लिए और 5 धागे पंचदेवों का प्रतिक हैं।
मौली बांधने के नियम
शास्त्रों के मुताबिक पुरुषों और महिलाओं को दाएं हाथ में ही रक्षासूत्र बांधना चाहिए। मौली बांधते समय हाथ की मुठ्ठी बंद होनी चाहिए। इस सूत्र को केवल 3 बार लपेटना चाहिए। वैदिक विधि से ही इसे बांधना चाहिए। हर साल संक्रांति के दिन, यज्ञ की शुरुआत में, कोई सोचा हुआ काम शुरू करने से पहले, मांगलिक काम, विवाह और हिन्दू संस्कारों के दौरान मौली बांधी जाती है।