वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी कहते हैं। इस बार यह शुभ तिथि 10 मई दिन मंगलवार यानि आज है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन ही भगवान राम की पत्नी, माता सीता का धरती पर अवतरण हुआ था। सीता नवमी का उतना ही महत्व है, जितना राम नवमी का। सीता नवमी को सीता जन्मोत्सव और जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है। माता सीता के कारण श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम बने। माता सीता का पूरा जीवन संघर्षों में बीता और उनका सम्पूर्ण जीवन आज भी प्रेरक और प्रासंगिक है। मान्यताओं के अनुसार, सीता नवमी के दिन विधि-विधान के साथ माता सीता और श्रीराम की पूजा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और इस दिन व्रत करने से माता सीता जैसी पवित्रता मिलती है। सीता नवमी का महत्व भगवान राम को विष्णु का अवतार माना गया है और माता सीता को माता लक्ष्मी का । सीता, नवमी के दिन मटके में अवतरित हुई थीं। कहा जाता है कि इस दिन माता सीता की पूजा श्रीराम के साथ करने पर श्रीहरि और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। मान्यताओं के अनुसार, सीता माता की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में कभी किसी चीज़ की कमी नहीं रहती है और जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। इस दिन विधि-विधान से माता सीता और भगवान राम की पूजा करने से 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल और समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिलता है। भूमि से हुआ माता सीता का जन्म पौराणिक कथाओं के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महाराज जनक संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ की भूमि तैयार कर रहे थे। इसके लिए वे हल से भूमि जोत रहे थे, तभी एक बालिका का प्राकट्य हुआ। तब से जोती हुई भूमि और हल की नोक को भी सीता कहा जाता है। इसलिए उस बालिका का नाम सीता रखा गया और इस पर्व को जानकी जयंती के नाम से जाना गया। माता सीता का विवाह अयोध्या के राजकुमार श्रीराम के साथ हुआ था। सीता नवमी पूजा विधि सीता नवमी की पूजा और व्रत करने वाले जातक सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत और पूजा का संकल्प लें। इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माता सीता और भगवान राम की तस्वीर या मूर्ति रखें। इसके बाद पूरी जगह पर गंगाजल से छिड़काव करें। माता सीता को श्रृंगार का सामान अर्पित करें। इसके बाद रोली, माला, फूल, चावल, धूप, दीप, फल व मिष्ठान अर्पित करें। तिल के तेल या गाय के घी से दीपक जलाएं और फिल माता की आरती उतारें। इसके बाद 108 बार माता सीता के मंत्रों का जाप करें और सीता चालीसा का पाठ करें। शाम के समय माता सीता की पूजा करें और दान करें। मान्यता है कि ऐसा करने से माता सीता जल्द प्रसन्न होती हैं और सदा सुहागन रहने का वरदान देती हैं।
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