गुजरात के द्वारका में स्थित द्वारकाधीश मंदिर भगवान विष्णु के 8वें अवतार भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है,द्वारकाधीश मंदिर में स्थापित भगवान श्री कृष्ण के विग्रह को “द्वारका के राजा” के रूप में पूजा जाता है। इसके अलावा द्वारकाधीश मंदिर को जगत मंदिर और निज मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण को समर्पित द्वारकाधीश मंदिर हिन्दू धर्म की सबसे प्रमुख चारधाम यात्रा का हिस्सा भी है गुजरात में अरब सागर के तट पर बसी हुई द्वारका नगरी का निर्माण भगवान श्री कृष्ण ने करवाया था और ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर नगर बसाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने जमीन का टुकड़ा समुद्र से प्राप्त किया था इसका एक पौराणिक घटनाक्रम भी है जो कि भगवान श्री कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी से जुड़ा हुआ है दरअसल पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दुर्वासा ऋषि का द्वारका नगरी आना हुआ..... जब भगवान श्री कृष्ण रुक्मिणी को दुर्वासा ऋषि के द्वारका आने की सूचना मिलती है तो वह दोनों दुर्वासा ऋषि का स्वागत करने के लिये नगर के द्वार तक जाते है, नगर द्वार महल से कुछ दूरी पर स्थित होता है इस वजह से देवी रुक्मिणी थक जाती है और एक स्थान पर बैठ कर भगवान श्री कृष्ण से पीने का पानी मांगती है। भगवान श्री कृष्ण उसी समय उस स्थान पर छेद कर देते है और उस छेद में गंगा नदी का पानी बहने लगता है। लेकिन इधर यह सब देखकर दुर्वासा ऋषि को बड़ा गुस्सा आता है, और अपने इसी गुस्से में वह देवी रुक्मिणी को श्राप दे देते है कि वह जिस जगह पर बैठी है सदैव उसी स्थान पर रहेगी। वर्तमान में द्वारका में जिस स्थान पर रुक्मिणी मंदिर बना हुआ है कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ दुर्वासा ऋषि ने देवी रुक्मिणी को श्राप दिया था। बात अगर मंदिर की करें तो चालुक्य शैली में निर्मित एक भव्य पांच मंजिला ईमारत है,मंदिर के निर्माण में चुना पत्थर का उपयोग किया गया है द्वारकाधीश मंदिर की पांच मंजिला ईमारत 72 स्तम्भों के आधार पर खड़ी हुई है। इसके अलावा मंदिर का मुख्य शिखर 78.3 मीटर (257 फ़ीट ) ऊँचा है। मंदिर के शिखर पर 52 कपडे से निर्मित ध्वज भी लगाया हुआ है जिसे प्रतिदिन 05 बार बदला जाता है। मंदिर के शिखर पर स्थापित ध्वज पर सूर्य और चन्द्रमा अंकित किये गए है जो की भगवान श्री कृष्ण के शासन का दर्शाते है। इसके अलावा ध्वज यह भी दर्शाता है की जब तक इस पृथ्वी पर सूर्य और चन्द्रमा रहेंगे तब तक यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण का शासन रहेगा।इसी वजह से द्वारकाधीश मंदिर को जगत मंदिर भी कहा जाता है,साथ ही मंदिर की दीवारों पर समय-समय पर यहाँ राज करने वाले राजाओं और उनके उत्तराधिकारियों ने बेहद महीन कारीगरी करवाई है। मंदिर में दो प्रवेश द्वार बने हुए है, पहला द्वार उत्तर दिशा में स्थित प्रवेश द्वार को “मोक्ष द्वार” कहा जाता है और दूसरा दक्षिण दिशा में स्थित प्रवेश द्वार को “स्वर्ग द्वार” कहा जाता है। स्वर्ग द्वार के बाहर कुल 56 सीढियाँ बनी हुई है जो की गोमती नदी के तट तक जाती है।
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