रामायण एक आदिकाव्य है, जिसका नाम सामने आते ही, निश्चित ही हमारे मन की दृष्टि में भगवान श्रीराम और हनुमान जी सादृश्य हो जाते हैं। भगवान श्रीराम की लीलाओं और हनुमान जी के पराक्रम से तो हम सभी भली भाँती परिचित हैं, लेकिन रामायण में कई ऐसे चरित्र भी हैं, जिनकी प्रवीणता ने अपनी छाप हमारे मन की परिदृश्य पर छोड़ी है। उन्हीं में से एक है वानरराज बाली। वानरराज बाली एक महाबलशाली वानर था क्योंकि वह किष्किंधा का राजा था। उस काल में बाली की शक्तियों का कोई तोड़ नहीं था। आज भी लोगों के बीच उसके बल के चर्चे सुनने को मिलते हैं।
वानर राज बाली इतना सामर्थ्यवान था कि उसने रावण और कुम्भकर्ण जैसे मायावी राक्षसों को आसानी से परास्त कर दिया था। रावण परमज्ञानी व मायावी था और साथ ही राक्षसों का राजा भी। भगवान शिव एवं ब्रह्माजी से वरदान पाने के बाद उसे खुद पर अहंकार हो गया था कि उसे कोई भी नहीं हरा सकता। एक दिन रावण की मुलाकात बाली से हुई। रावण को लगा कि वह साधारण सा वानरों का राजा उसका क्या बिगाड़ लेगा? लेकिन उसका यह भ्रम तब दूर हो गया, जब बाली ने उसको मल्ल युद्ध में पराजित कर, 6 महीने तक अपनी कांख में दबाकर रखा। जिसके बाद रावण को लगा कि वह लंका वापस कभी नहीं लौट पाएगा। अंततः उसको बाली से हार माननी पड़ी। जिसके परिणामस्वरूप, बाली ने रावण का घंमड चूर-चूर किया और अभयदान भी दिया।
वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा काण्ड - सर्ग 10 में बाली की ताकत और पराक्रम का उल्लेख है। बाली सूर्योदय से पूर्व, पश्चिम तट से पूर्वी समुद्र तक और दक्षिण समुद्र से उत्तर समुद्र के किनारे तक घूम आता था। किंतु इतनी दूर चलकर भी वह थकता नहीं था। उसमें उड़ने की दिव्य शक्ति भी निहित थी। वह गदा और मल्ल युद्ध में पारंगत था। कहते हैं कि बाली को ऐसा वरदान था कि जो योद्धा उस पर सामने से वार करता, उसका बल उसमें आ जाता। उसने हजार हाथियों जितने बलशाली असुर - दुंदुभि को भी पराभूत कर दिया था। उसने एक मायावी असुर का भी महीनों तक सामना कर, एक गुफा में वध कर दिया था।
रामायण धर्म ग्रंथ के अनुसार, बाली रोजाना सूर्यदेव की उपासना करता था। देवराज इन्द्र, बाली के धर्म पिता थे। बाली महाबलशाली था, लेकिन उसमें साम्राज्य-विस्तार की भावना नहीं थी।
जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह शक्ति के गुणों से रहित बाली के अंदर कुछ अवगुण भी थे। जैसे किष्किंधा का राजा होने के लिए उसने सेवक जैसे भाई सुग्रीव को निकाल दिया और उसकी पत्नी छीन ली। इसके बाद जब सुग्रीव ने अपमान का बदला लेने की कोशिश की तो बाली उसे मार डालेने को आमाद हो गया। जिसकी वजह से भगवान श्रीराम ने उसका वध किया।
देखा जाए तो बाली का चरित्र हमें एक सीख देता है। कि अपनी शक्तियों का हमें हमेशा सदुपयोग करना चाहिए और एक प्रगतिशील दृष्टिकोण रखकर, हमेशा उसे सत्कर्म में लगाना चाहिए। अन्यथा अंत हमेशा बुरा ही होता है।