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छत्तीसगढ़ : महामाया मंदिर में माता के तीन स्वरूपों की पूजा

भारत मंदिरों का देश है। देश में मंदिरों की संख्या और विविधता, धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मंदिर भक्ति ही नहीं....सनातन संस्कृति के वाहक, आध्यात्मिक ऊर्जा के स्रोत और पारंपरिक संस्कृति के आधार हैं। ये मंदिर पूरे देश में विस्तारित हैं और लोगों की अटूट आस्था का केंद्र हैं।

 

ऐसा ही एक मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले में है, जहां लगभग 500 साल पहले वहां के राजा ने मां भगवती के साक्षात दर्शन किए और फिर मां का मंदिर बनवा दिया। जी हां, सिद्ध शक्तिपीठ श्री महामाया देवी मंदिर, जो बिलासपुर से तकरीबन 25 किलोमीटर की दूरी पर रतनपुर में है।

 

यहां माता महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूपों में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं। मंदिर के मुख्य परिसर में महाकाली, भद्रकाली, सूर्य देव, भगवान विष्णु, हनुमान जी, भैरव और भगवान शिव की छोटी मूर्तियाँ हैं। नवरात्रों में भक्त देश और दुनिया के सभी कोनों से देवी की एक झलक पाने और अपने अनुष्ठान करने के लिए आते हैं। इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा पुनर्निर्मित किया गया है, जिसमें पाँच साल लगे, लेकिन मंदिर का वास्तविक आकार बरकरार रखा गया।

 

इस मंदिर का निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम ने 11वीं शताब्दी में कराया था। माना जाता है कि एक दिन राजा रत्नदेव (प्रथम) मणिपुर नामक गांव में रात विश्राम करने के लिए रूके थे। आधी रात में जब उनकी आंख खुली तब उन्होंने वट वृक्ष के नीचे आलौकिक प्रकाश देखा। जहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई थी। सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। यहां विक्रम संवत् 1552 में मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर के संरक्षक की भूमिका में काल भैरव विराजित हैं। कहते हैं, इस मंदिर से कभी कोई खाली झोली लेकर नहीं लौटता है।