किन्हें भोग लगाने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करते हैं भगवान जगन्नाथ ?
जगन्नाथ के भात को, जगत पसारे हाथ। ये कहावत तो आपने सुनी होगी लेकिन क्या आप जानते हैं कि जगन्नाथ जी को भोग लगाने से पहले एक देवी को भोग लगाया जाता है और उसके बाद ही जगत के नाथ उस भोग को स्वीकार करते हैं। वो हैं बिमला देवी। जगन्नाथ मंदिर में भगवान से पहले बिमला देवी को भोग लगाए जाने की परंपरा है। अब आप सोच रहे होंगे कि ये बिमला देवी हैं कौन? देवी बिमला को आदि शक्ति मां पार्वती का स्वरूप माना जाता है। जो भगवान विष्णु की बहन हैं और पुरी की अधिष्ठात्री देवी हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के लिए देवी लक्ष्मी स्वयं भोग तैयार करती थीं। नारद मुनि को इस भोग को चखने की बड़ी इच्छा थी। आखिरकार माता लक्ष्मी को प्रसन्न कर वरदान में भोग चखने का वर मांग लिया। माता लक्ष्मी ने उन्हें भोग प्रसाद दिया लेकिन इसे अपने तक ही सीमित रखने के लिए कहा। नारद मुनि प्रसाद लेकर कैलाश चले गए और उनके मुंह से महाभोग की बात निकल गई भगवान शिव ने भी प्रसाद ग्रहण करने की इच्छा जताई। प्रसाद ग्रहण कर भोलेनाथ प्रसन्न होकर नृत्य करने लगे जिससे कैलाश डगमगाने लगा। देवी पार्वती ने इसका कारण पूछा और भोग की बात पता चलने पर प्रसाद ग्रहण करने की इच्छा जताई लेकिन प्रसाद समाप्त हो गया था। इससे देवी रुष्ट हो गईं। इसके बाद भगवान शिव देवी के साथ जगन्नाथ धाम पहुंचे। देवी पार्वती ने मायके में भोजन करने की इच्छा प्रकट की। भगवान जगन्नाथ जी सब कुछ समझ गए और कहा देवी लक्ष्मी के हाथ से बने भोग का प्रसाद पाने से कर्म का सिद्धांत बिगड़ सकता है। इसलिए मैंने इसे सीमित रखा था लेकिन अब सभी इसे ग्रहण कर पाएंगे। मेरे लिए तैयार भोग सबसे पहले मेरी बहन पार्वती देवी को अर्पित किया जाएगा।
मां पार्वती के संतानों के प्रति इस बिमल प्रेम के कारण उन्हें बिमला देवी के रूप में पूजा जाता है।