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Temples of India: लेपाक्षी मंदिर, जिसका रहस्य सुलझाने में विज्ञान भी है नाकाम...

भारत की प्राचीनता की पहचान यहाँ मौजूद प्राचीन मंदिर, ऐतिहासिक इमारतों और उनके वास्तुकला से होती है। भारतीय इतिहास इतना समृद्ध है कि देश के हर हिस्से में एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक स्थल, प्राचीन मंदिर और भव्य महल मौजूद हैं। यहां कई ऐसे मंदिर हैं जो अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हैं और कई तो ऐसे हैं जो अपने अंदर इतने रहस्य समेटे हुए है कि उसका जवाब पाने के लिए विज्ञान भी सालों से प्रयास में लगा है। ऐसा ही एक मंदिर है- लेपाक्षी मंदिर। ये मंदिर अपने एक खंभे के कारण लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। ये मंदिर अपने खंभे की वजह से दुनियाभर में लोकप्रिय है। खास बात तो ये है कि इसी पिलर पर पूरे मंदिर का भार भी टिका हुआ है।

 

 

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में स्थित लेपाक्षी मंदिर में कुल 70 खंभे हैं, लेकिन इन 70 खंभों में एक खंभा बेहद खास है, जो लोगों के बीच आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। दरअसल 27 फीट ऊंचा ये यह खंभा जमीन से करीब आधा इंच ऊपर है और इस कारण होने के कारण इस मंदिर को हैंगिंग टेम्पल भी कहा जाता है। लेपाक्षी मंदिर अपने पौराणिक कारणों से तो विख्यात है ही, इस खंभे के कारण भी लोग दूर दराज से आते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि  इस खम्बे के नीचे से कुछ निकालने से घर में सुख-समृद्धि आती है। तभी तो यहां आने वाला हर कोई इस खंभे के नीचे से कपड़े निकालता है।

 

जितना रहस्यमई ये खंभा है उतना ही रोचक इस मंदिर का इतिहास भी है। इस मंदिर का नाम लेपाक्षी क्यों पड़ा इसके पीछे एक पीछे एक कहानी है, जो रामायण से जुड़ी है। दरअसल जब रावण ने माता सीता का हरण कर लंका की तरफ जा रहा था, तब माता सीता को उसके चुंगल से छुड़ाने के लिए पक्षीराज जटायु ने रावण से युद्ध किया और युद्ध करते-करते पक्षीराज घायल हो गए और जमीन पर गिर गए। माता सीता की तलाश करते हुए जब प्रभु श्रीराम यहां पहुंचे तो उन्होंने "ले पाक्षी" कहते हुए जटायु को अपने गले लगा लिया। दरअसल तेलुगु भाषा में "ले पाक्षी"  का अर्थ होता है... "उठो पक्षी"...

 

इस मंदिर में एक और विशेषता है, और वो है इस मंदिर में 24 फीट की वीरभद्र की एक वॉल पेंटिंग। इसके बारे में कहा जाता है कि ये छत पर बनाई गई भारत की सबसे बड़ी वॉल पेंटिंग है साथ ही यहां एक पैर का निशान भी है जिसे देखने लोग दूर दूर से यहां आते हैं कहते हैं कि ये पैर के निशान माता सीता के हैं। इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग मौजूद है जिसे भगवान शिव का रौद्र अवतार यानि वीरभद्र अवतार माना जाता है, कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1583 में विरुपन्ना और विरन्ना नाम के दो भाईयों ने करवाया था... लेकिन यहां के बारे में मान्यता ये भी है कि इस मंदिर में स्थित वीरभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्त्य ने करवाया था ये मंदिर भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान वीरभद्र को समर्पित है जो एक कछुआ की पीठ की तरह बने हुए पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।

 

 

(आकांक्षा शर्मा)