कश्मीर के गांदरबल जिले में स्थित खीर भवानी मंदिर हमेशा से कश्मीरी पंडितों के लिए आस्था का एक बड़ा केंद्र रहा है। इस मंदिर में माता राग्यना देवी की पूजा होती है। ये मंदिर अपने कुंड को लेकर भी बेहद खास माना जाता है। ये कुंड जितना खास है, उतना ही रहस्यमयी भी है। इस कुंड के बारे में कहा जाता है कि जब भी कोई अनहोनी या आपदा घटित होने वाली होती है, तो इस मंदिर के कुंड के पानी का रंग अपने आप बदल जाता है। इस मंदिर का इतिहास भी बेहद रोचक है।
दरअसल इस मंदिर का निर्माण सन् 1912 में महाराज प्रताप सिंह ने करवाया था और फिर इसको दोबारा फिर महाराज हरि सिंह ने बनवाया था। मान्यता है कि अमरनाथ की गुफा के खीर भवानी मंदिर ही दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक स्थान है। जानकारों की मानें तो, साल 1989 में आतंकी घटनाओं के कारण कश्मीरी पंडित यहां से पलायन कर गए थे। लेकिन साल 2007 के बाद यहां एकबार फिर से लोगों का पहुंचना शुरू हो गया।
इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी हैं। उनमें से एक कथा के अनुसार, एक बार रावण तपस्या से खुश होकर खीर भवानी माता प्रकट हुई। फिर उनके आशीर्वाद से रावण ने उन्हें कुलदेवी के रूप में स्थापित किया और लंका में इनका मंदिर बनवाया। लेकिन जब प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया तो माता राग्यना ने वो स्थान छोड़ दिया और जम्मू-कश्मीर आकर बस गईं। प्रभु श्रीराम ने देवी राग्यना को रागिनी कुंड में स्थापित किया और कुंड के बीचो बीच माता की मूर्ति स्थापित करवाई। इस चमत्कारी कुंड के बारे में कहा जाता है कि जब भी इस क्षेत्र में कोई मुसीबत आती है तो कुंड के पानी का रंग बदलने लगता है।
हर साल ज्येष्ठ मास की अष्टमी तिथि के दिन यहां वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है और ये मेला कश्मीरी पंडितों के लिए काफी महत्वपूर्ण भी माना जाता है। कश्मीरी पंडित ज्येष्ठ मास की अष्टमी तिथि को एक त्योहार की तरह मनाते हैं। इस मौके पर यहां कुंड में दूध और खीर चढ़ाने की परंपरा है और मंदिर के कुंड में भोग लगाने ते लिए दूर दराज से लोग यहां पहुंचते हैं।
अक्षरा आर्या