Sanskar
Related News

भगवान शिव को शमी पत्र प्रिय क्यों ?

आशुतोष भगवान भोले नाथ और उनकी महिमा का कोई अंत नहीं, ये समस्त ब्रमांड भगवान शिव की ही माया है। बड़ी ही आसानी से प्रसन्न होने वाले भोले नाथ इतने सीधे-साधे हैं की हर कोई उन्हें अपने-अपने तरीके से प्रसन्न करता है। देव आदि देव महादेव को धतूरे के फूल, आक के फूल, कनेर के फूल, अपराजिता के फूल और कमल आदि के फूल चढ़ाए जाते हैं जिसमें भोले नाथ को सबसे ज्यादा फूलों में कमल का फूल प्रिय है, पर एक शमी पत्र को इन सब के तुल्य माना जाता है। आखिर शमी पत्र क्या है ? और क्यों शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है ? हमारे धर्म ग्रंथों और पुराणों के अनुसार शमी का वृक्ष पवित्र और धार्मिक रूप से बहुत अधिक महत्व माना जाता है। शमी के पौधे का पूजन करने से जीवन में आई परेशानी और तमाम पीड़ाओं से भी मुक्ति मिलती है।

शमी और मंदार की कथा

शिवमहापुराण के अनुसार, सतयुग में एक दिन मालवा में औरव नाम के बहुत बड़े शिव भक्त विद्वान ब्राह्मण थे। शिव कृपा से उनका तेज वेदों के ज्ञान के समान और तेज़ सूर्य के सामान था, उन्हें देवताओं के समान शक्तियां प्राप्त थी। भोलेनाथ की कृपा से एक दिन उनकी पत्नी ने शाम के समय एक सुन्दर पुत्री को जन्म दिया। शिव कृपा से हुई इस पुत्री का नाम शमी रखा गया। जब शमी सात वर्ष की हुई तो उन्होंने शमी का विवाह धौम्य ऋषि के पुत्र मन्दार से कर दिया। मन्दार अभी शौनक ऋषि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त कर रहा था, अतः विवाह के बाद शमी को उसके माता-पिता के घर छोड़कर शिक्षा पूरी करने अपने गुरु के आश्रम चला गया। जब मन्दार और शमी यौवन अवस्था में आए तब मन्दार अपने ससुराल गया और शमी को विदा कराकर लाने लगा। रास्ते में एक परम महान तपस्वी भृशुण्डी ऋषि का आश्रम पड़ता था जो भगवान गणेश के अनन्य भक्त थे। ऋषि भृशुण्डी ने भगवान गणेश को प्रसन्न कर यह वरदान प्राप्त किया की गणेश जी की तरह ऋषि भृशुण्डी का मुख दिखे। जब शमी और मन्दार भुशुण्डी के आश्रम के पास पहुंचे तो उन्हें गणेश जी की तरह सूंढ़ निकाले देख कर दोनों को हँसी आ गई। इस पर ऋषि बहुत क्रोधित हुए और कुपित हो कर उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि - तुम दोनों वृक्ष बन जाओ, ऐसा वृक्ष कि जिसके पास पशु-पक्षी भी न आएं। मंदार ऐसा वृक्ष बना जिसकी पत्तियां कोई पशु नहीं खाता और शमी ऐसा वृक्ष बनी जिस पर काँटों की अधिकता के कारण कोई पक्षी शरण नहीं लेता।

जब शमी और मंदार, ऋषि शौनक के आश्रम नहीं पहुंचे तब उनके पिता औरव ऋषि उनको ढूंढ़ने निकले। जब वह भृशुण्डी के आश्रम पर आये तो उन्हें वहां सारी बात की जानकारी हुई। उन्होंने भृशुण्डी ऋषि से दोनों को शापमुक्त करने का अनुरोध किया, पर भृशुण्डी ऋषि ने इसमें अपनी असमर्थता व्यक्त की। तब उन्होंने भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या कर वंदना आरंभ कर दी।

उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान गणपति प्रगट हुए। गणेश जी ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। उन्होंने शमी और मन्दार को शापमुक्त कर फिर से पूर्वावस्था में लाने का वरदान माँगा। किन्तु गणेश जी ने अपने प्रिय भक्त भृशुण्डी की अवहेलना नहीं करना चाहते थे और यह वरदान देने से मना कर दिया परन्तु बदले में यह वरदान दिया कि ये दोनों वृक्ष तीनो लोकों में पूजनीय व वंदनीय होंगे और भगवान शिव तथा स्वयं उनकी पूजा बिना इनकी उपस्थिति में पूर्ण नहीं मानी जाएगी। शमी वृक्ष गंगा और तुलसी के समान ही पवित्र और सहज ही मनोकामना पूर्ण करने वाला होगा। जो भी भक्त शिवलिंग पर शमी पत्र और मंदार के फूल और पत्र अर्पित करेगा वह मनवांछित फल का अधिकारी होगा यही कारण है की बिना शमी पत्र के भगवान शिव और गणपति की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। शिवलिंग पर शमी पत्र अर्पित करने से महादेव प्रसन्न होते हैं और समस्थ मनोकामनाओ की पूर्ति होती है।

शमी पत्र कब नहीं तोड़ना चाहिए

लिंग पुराण के अनुसार अमावस्या तिथि, तथा रविवार और सोमवार के दिन शमी पत्र नहीं तोड़ना चाहिए।

रमन शर्मा