सनातन धर्म में मंदिरों का विशेष स्थान है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में कई सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर हैं और गुजरात में काली माता का एक ऐसा ही अनोखा मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां मांगी गई मन्नत बहुत जल्द ही पूरी हो जाती है। आखिर क्या है इस मंदिर की विशेषताएं, आइये जानते हैं विस्तार से।
मां काली की है दक्षिणमुखी मूर्ति
गुजरात के ऊँची पहाड़ियों पर स्थित पंचमहल जिले में बना पावागढ़ का महाकाली मंदिर अपने आप में बहुत खास है। यहा मां की दक्षिणमुखी मूर्ति है। इसीलिए यह स्थल बेहद पूजनीय और पवित्र माना जाता है।
ये गुजरात का सबसे पुराना मंदिर है और यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के मुताबिक ऐसा कहा जाता है कि रामायण काल में मुनि विश्वामित्र ने यहां कालिका मां की तपस्या की थी। उन्हीं ने प्रतिमा स्थापित कराई थी।
500 साल बाद मंदिर के शिखर पर फहरा ध्वज
स्थानीय लोगों के मुताबिक मंदिर के शिखर को करीब 500 साल पहले सुल्तान महमूद बेगड़ा ने नष्ट कर दिया था। हालांकि, हाल ही में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया जिसमें मंदिर का नया शिखर तैयार किया गया जिस पर फिर से विधि-विधान पूर्वक ध्वजा फहराई गयी है।
1471 फीट की ऊंचाई पर 'माची हवेली'
पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत प्राचीन गुजरात की राजधानी चंपानेर से होती है। यहां तकरीबन 1,471 फुट की ऊंचाई पर 'माची हवेली' स्थित है। मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोप-वे की सुविधा भी है। यहां से मंदिर तक पैदल पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यह मंदिर ऊँची पहाड़ियों के बीच लगभग 550 मीटर की ऊंचाई पर है।
8 करोड़ साल है पर्वत की उम्र
किवदंतियों के अनुसार, पावागढ़ पर्वत की उम्र लगभग 8 करोड़ साल है। यह पहाड़ 40 वर्ग किलोमीटर के घेरे में फैला हुआ है। प्राचीन काल में इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई करना असंभव था। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी हर तरफ बहुत ज्यादा रहता था इसलिए इसे ‘पावागढ़’ कहा जाने लगा। यानी, ऐसी जगह जहां पवन (हवा) का वास हमेशा एक जैसा हो।
ज्वालामुखी की क्रिया से बना पर्वत
भू-विज्ञानियों की मानें तो यह पर्वत एक ज्वालामुखी क्रिया से बना है जो कि हजारों साल पुराना हो सकता है। इसकी ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 800 मीटर है। मंदिर की संरचना 10वीं या 11वीं सदी की है। इसे यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स कि लिस्ट में शामिल किया है।
क्या है मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती के दाहिने पैर का अंगूठा यहीं गिरा था जिसके बाद यहाँ शक्तिपीठ की स्थापना की गई। एक कथा और है कि एक बार नवरात्रि के त्योहार के दौरान मंदिर में पारंपरिक नृत्य गरबा का आयोजन किया गया जिसमें सैकड़ों भक्तों ने एक साथ मिलकर नृत्य किया । जनश्रुति के अनुसार इस नृत्य उत्सव में स्वयं माता काली ने भी एक महिला के रूप में हिस्सा लिया था।
भक्तों और पर्यटकों का उमड़ता है हुजूम
मंदिर परिसर में आम दिनों में श्रद्धालु और पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। एक दिन में लगभग एक हजार लोग दर्शन पूजन करने के लिए आते हैं लेकिन यहां सबसे ज्यादा रौनक नवरात्रि के दौरान होती है।
रजत द्विवेदी