भगवान भोलेनाथ की लीला अनंत है । देवों के देव महादेव, जो अपने भोलेपन के कारण ही भोलेनाथ कहे जाते हैं। अर्थात जिन्हें प्रसन्न करना इतना सरल है कि बस एक लोटा जल और बेल पत्र से ही तृप्त हो जाते हैं। हम शिवालयों में जाकर भगवान शिव की प्रिय वस्तुओं को अर्पण कर उनकी कृपा पाने का प्रयास करते हैं । इनमें बेलपत्र जरूर देखे होंगे क्योंकि बेलपत्र के बिना शिव पूजन अधूरा सा माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भोलेनाथ को आखिर बेलपत्र इतना प्रिय क्यों है ? बेलपत्र से शिव जी का नाता कैसे जुड़ा और कैसे बना ये भोले नाथ का प्रिय पत्र ? आइये जानते हैं ।
देवी पार्वती को शिव जी ने सुनाई कथा
शिवमहापुराण के अनुसार एक समय सतयुग में भगवान शिव भगवती पार्वती जी सहित कैलाश पर विराजमान थे। तभी देवी पार्वती जी ने जनकल्याण और मानवहित के लिए जिज्ञासावश भोलेनाथ से पूछा…“हे महेश्वर ! मैं यह जानना चाहती हूँ कि आपके पूजन में बेलपत्र क्यों अनिवार्य होता है ? आपको बेल पत्र के समान और कुछ क्यों प्रिय नहीं है ?” महादेव बोले- “हे महेश्वरी आप सर्वज्ञ हैं । संसार में ऐसा कुछ नहीं है जो आप से छिपा हो । इस माया रूपी संसार की सभी शक्तियां आपकी ही माया हैं पर यदि आप बेलपत्र की महिमा मेरे द्वारा ही सुनना चाहती हैं तो सुनिए।“ जगत के कल्याण और मनुष्य के उद्धार के लिए भगवान शिव ने बेलपत्र का महत्व पार्वती जी को समझाया।
“एक बार भगवान नारायण क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर लेटे हुए थे और देवी लक्ष्मी उनके पैर दबा रहीं थीं। दोनों में मानसिक रूप से आपस में वार्तालाप हो रहा था कि तभी भगवान विष्णु ने अपनी माया से ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी कि बातों ही बातों में देवी महालक्ष्मी भगवान श्रीहरि से रुष्ट हो गईं और नारायण के जब नेत्र खुले तो देवी लक्ष्मी उनकी चरण वंदना और पूजन कर मेरी आराधना करने हेतु पृथ्वी पर श्रीशैल पर्वत पर चली गईं । यह पर्वत वर्तमान में भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य के कर्नूल ज़िले में है। लक्ष्मी जी वहां पार्थिव शिवलिंग बना कर मेरी आराधना करने लगीं । कुछ समय बाद उन्होंने अपना देवी स्वरुप त्याग कर कठिन आराधना के लिए वहीं एक वृक्ष के रूप में जन्म लिया और उसके फूल और पत्तों से निरंतर शिवलिंग का पूजन एक कोटि वर्ष तक किया।“
लक्ष्मी जी को मिला ‘हरिप्रिया’ का वरदान
इससे महादेव प्रसन्न हुए और देवी लक्ष्मी को दर्शन देकर कठोर तपस्या करने का कारण पूछा और वरदान मांगने को कहा लक्ष्मी जी ने कहा “हे महेश्वर ! इस भूमण्डल पर आकाश तथा पाताल में क्या कुछ ऐसा है जो आपसे छिपा हो। हे, उमापति भोलेनाथ जिस प्रकार आपके ह्रदय में नारायण अवतार श्रीराम का वास है ठीक उसी प्रकार मैं भी श्रीहरि के ह्रदय में सदा के लिए वास करना चाहती हूँ।“
भोलेनाथ ने उन्हें श्रीहरि के वक्षस्थल में निवास और हरिप्रिया होने का वरदान दिया। देवी लक्ष्मी बोलीं “हे प्रभु ! मैंने जिस वृक्ष के रूप में आपका पूजन किया है, वह त्रिदेव का प्रतीक है । मेरे ह्रदय में नारायण का वास है जिनकी नाभि से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए हैं । मैनें अपने मनोरथ के लिए आपकी यानि महेश्वर की आराधना की है । आज से बेलवृक्ष की जड़ों में देवी गिरिजा, तने में देवी महेश्वरी, शाखाओं में दक्षायनी, पत्तियों में त्रिदेव और देवी पार्वती, फूलों में गौरी, फलों में देवी कात्यायनी और सम्पूर्ण भाग में लक्ष्मी का वास होगा।“
यह सुन कर महादेव बहुत प्रसन्न हुए और देवी लक्ष्मी को वरदान देते हुए कहा “हे देवी ! आज से जिस प्रकार तुम श्री हरि की प्रिया हो उसी प्रकार ये बेल पत्र मेरी सबसे प्रिय वस्तु होगी। यह कभी अशुद्ध नहीं होगा। इसमें विष को समाप्त करने की भी शक्ति विद्यमान होगी। जो भी देवता या मनुष्य बिल्ववृक्ष से पंचाक्षर मंत्र ‘ओम नमः शिवाय’ का उच्चारण करके बिल्वपत्र तोड़ कर शिवलिंग पर सच्चे ह्रदय से अर्पित करेंगे या बिल्ववृक्ष की जड़ से मिट्टी लेकर पार्थिव शिवलिंग बना कर पूजन करेंगे उसकी मनोवांछित कामनाएं फलित होंगी। जिस घर में बेल का वृक्ष होगा उस घर के प्राणी की कभी अकाल मृत्यु नहीं होगी । उस घर में लक्ष्मी और सुख-सौभाग्य सदा बना रहेगा । इस वृक्ष की छाया यदि किसी पार्थिव शरीर पर पड़ेगी तो उस मनुष्य की आत्मा वैकुण्ठ और शिवलोक में वास करेगी।
इतना कह कर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो जाते हैं और देवी लक्ष्मी पुनः श्री हरि के पास बैकुंठलोक में चली जाती हैं।
इस प्रकार महादेव के वरदान स्वरुप तभी से बेलपत्र की महिमा समस्त संसार में स्थापित हुई। पहले देवी-देवताओं ने, सप्तऋषियों ने, फिर ऋषि-मुनियों ने, और उसके बाद कलयुग में मनुष्यों ने बेलपत्र से महादेव का पूजन कर अभीष्ट की प्राप्ति की ।
रमन शर्मा