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सनातन संस्कृति और जन्माष्टमी का संदेश

कृष्ण एक अवतार मात्र नहीं बल्कि धर्म के संस्थापक हैं । जब धरती पर अधर्म का चरम हुआ तो भगवान ने अवतार लिया और धर्म को पुनर्स्थापित किया । वे मानव मात्र की प्रगति के लिए एक नया युग लेकर आए । सनातन संस्कृति में कृष्ण जन-जन के आराध्य हैं और एक सच्चे मार्गदर्शक भी हैं। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अत्यंत विशाल है । कृष्ण के अवतार का उद्देश्य कंस, महाभारत, कालिया मर्दन, रासलीला मात्र नहीं बल्कि वह एक जीवन दर्शन के प्रणेता हैं । हृदय में प्रेम.... आँखों में दिव्य दृष्टि। आइये जानते हैं कि सनातन संस्कृति में श्रीकृष्ण और जन्माष्टमी क्यों है महत्वपूर्ण ।

क्या है सनातन धर्म ?

सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कहा गया है। जैसे सत्य सनातन है । ईश्वर सत्य है , आत्मा ही सत्य है , मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म है। जो अनादि काल से चला आ रहा है वही सत्य सनातन है। जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है । सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं जिनका शाश्वत महत्व है। सनातन मतलब जो 'शाश्वत' या 'हमेशा बना रहने वाला' हो । इसलिए जो सत्य को धारण करता है उसके जीवन से समस्त प्रकार के विकार मिट जाते हैं।

सनातन धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे प्राचीन है। एक परम्परागत वैदिक धर्म, जिसमें परमात्मा को साकार और निराकार दोनों रूपों में पूजा जाता है। सनातन धर्म वेदों पर आधारित है जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए है। सनातन धर्म को मानने वाले पूरे विश्व में हैं और सबसे अधिक मानने वाले भारत भूमि में हैं। सनातन धर्म अपने आप में इतना विशाल है कि इसमें से समय-समय पर विभिन्न शाखाएं निकलती रहीं ।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व

सनातन धर्म के अनुयायी अनेक देवी-देवताओं, ऋषियों-मुनियों को पूजते हैं लेकिन इनमें भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की लीला अत्यंत न्यारी है । श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का सनातन धर्म में बहुत महत्व माना गया है। पृथ्वी लोक पर बढ़ रहे अत्याचारों को खत्म करने और धर्म को फिर स्थापित करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने आठवें अवतार श्रीकृष्ण के रुप में पृथ्वी पर जन्म लिया । उन्हें श्रीहरि का सबसे सुंदर और ओजस्वी अवतार माना जाता है। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष हैं।

श्रीकृष्ण का समस्त जीवन ही अन्याय का प्रतिकार और न्याय की रक्षा करने में बीता । भगवान कृष्ण का न सिर्फ व्यक्तित्व अनूठा है और वे सम्पूर्ण अवतार के रूप में स्वीकार किया गए हैं बल्कि ‘कृष्ण’ शब्द भी गहरे बोध का परिचायक है। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है जिस ओर सारी चीजें खिंची चली आती हों, एक चुंबक की तरह । सनातन धर्म की ऐसी महिमा है कि यदि आध्यात्मिक तौर पर देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है, क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है वह आकृष्ट होती हैं। शरीर ही नहीं परिवार, समाज उसके आसपास निर्मित होता है ।  व्यापक अर्थों में देखा जाए तो यह सम्पूर्ण जगत आकृष्ट होकर उसके आसपास निर्मित होता है।

ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।

मनः षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति।।

'इस देह में यह सनातन जीव मेरा ही अंश है और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षित करता है।' (भगवद् गीताः 15.7)

नायक हैं श्रीकृष्ण

भगवान कृष्ण ऐसे नायक हैं जिनका चरित्र दार्शनिक होने के साथ-साथ बहुत ही व्यवहारिक है। इसी के साथ भगवान कृष्ण का पूरा जीवन प्रबंधन के नजरिए से आदर्श जीवन चरित है। भगवान श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व और जीवन से जुड़ी तमाम लीलाएं, वस्तुएं, आख्यान विद्यमान हैं जो उनके जीवन का प्रमुख हिस्सा रहीं । भगवान श्रीकृष्ण अपने साथ ऐसी चीजें रखते है जो जनसाधारण के लिए कुछ न कुछ सन्देश अवश्य देती हैं। जैसे- बांसुरी, गाय, मोरपंख, कमल, माखन मिश्री और वैजयंती माला । इसी तरह श्रीकृष्ण ने गोकुल और वृंदावन में मुरली के मोहक स्वर में ही नहीं कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में गीता के रूप में सृजनशीलता का संदेश दिया । अर्जुन को युद्ध भूमि में मोह-माया छोड़ने अर्थात व्यष्टि से समष्टि (सनातन तत्व) की ओर अभिप्रेरित किया । इसीलिए कृष्ण सनातन हैं और सनातन कृष्ण । एक कवि के शब्दों में कहें तो.....

कृष्ण तुम पर क्या लिखूं, कितना लिखूं !

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित, चाहे जितना लिखूं !

अहरार