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अवतरण दिवस पर विशेष

कौन हैं भगवान दत्तात्रेय और कितनी फलदायी है उनकी पूजा ?

त्रिदेव यानि ब्रह्मा विष्णु और महेश का अंश कहे जाने वाले भगवान दत्तात्रेय के अवतरण दिवस को दत्तात्रेय जयंती, दत्त जयंती और दत्त पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, जो हर साल मार्गशीर्ष यानि अगहन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। कहते हैं कि भगवान दत्तात्रेय में गुरु और ईश्वर दोनों के स्वरूप विद्यमान हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान दत्तात्रेय त्रिदेव के अंश क्यों कहलाते हैं?  उनका स्वरुप कैसा है ? और उनकी पूजा कितनी फलदायी है ? आज इस आलेख में हम इन्ही सवालों  का जवाब जानेंगे। 

श्रीमद्भभागवत के अनुसार, पुत्र प्राप्ति की कामना करते हुए महर्षि अत्रि ने व्रत किया था जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु ने महर्षि अत्रि से कहा, 'दत्तो मयाहमिति यद् भगवान् स दत्तः' अर्थात मैंने अपने आपको तुम्हें दे दिया। भगवान विष्णु ने ऐसा कहते हुए महर्षि अत्रि के पुत्र रूप में जन्म लिया और दत्त कहलाए। अत्रिपुत्र होने से ये आत्रेय के नाम से भी जाने जाते हैं। दत्त और आत्रेय के संयोग से ये दत्तात्रेय के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनकी माता महान पतिव्रता अनसुइया देवी थीं जिनका पतिव्रता धर्म पूरे संसार में प्रसिद्ध है। स्वयं भगवान दत्तात्रेय भी कृपा की मूर्ति माने जाते हैं।

भगवान दत्तात्रेय के संबंध में प्रचलित है कि इनके तीन  सिर हैं और छह भुजाएं हैं। दत्तात्रेय जयंती के दिन दत्तात्रेय जी के बालरूप की पूजा करने का विधान है। कहा जाता है कि इनकी उपासना करने से व्यक्ति को तत्काल फल की प्राप्ति होती है और ये भक्तों के कष्टों का शीघ्र निवारण करते हैं। साथ ही सच्चे मन से पूजन और मंत्र का जाप करने से सुख-समृद्धि मिलती है। दक्षिण भारत में भगवान दत्तात्रेय के अनेकों मंदिर हैं और कहते हैं कि इन्हीं के नाम पर दत्त सम्प्रदाय का भी उदय हुआ

भगवान दत्तात्रेय के जन्म से जुडी एक पौराणिक कथा के अनुसार त्रिदेवी यानि माता लक्ष्मी, माता सरस्वती और माता पार्वती ने देवी अनसुइया के सतीत्व की परीक्षा लेने की योजना बनाई। उन्होंने त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उनके पास भेजा। तीनों साधु भेष में वो अत्रिमुनि के आश्रम पहुंचे लेकिन महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। अतिथियों को द्वार पर देखकर देवी अनसुइया ने स्वागत-सत्कार किया और भोजन के लिए पूछा । लेकिन त्रिदेव उनसे गोद में बिठाकर भोजन कराने का आग्रह करने लगे। देवी अनसुइया पतिव्रता स्त्री थी और वो ऐसा नहीं कर सकती थी लेकिन साधुओं को भी बिना भोजन कराये विदा करना उचित नहीं समझा। उन्होंने इस धर्मसंक्ट से निकलने के लिए भगवान नारायण और अपने पति का स्मरण किया और प्रभु की लीला समझते हुए कहा कि यदि मेरा पतिव्रता धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु 6-6 माह के शिशु में परिवर्तित हो जाएं। ऐसा कहते ही तीनों शिशु बन गए और फिर उन्होंने गोद में बिठाकर स्तनपान करवाया। इस प्रकार देवी ने अपने सतीत्व का प्रमाण दिया और साधुओं का मान भी रखा। उधर जब त्रिदेव देवलोक नहीं लौटे तो त्रिदेवियां अनसुइया जी के पास पहुंचीं और परीक्षा लेने के लिए क्षमा मांगते हुए तीनों को उनके वास्तविक स्वरूप में लाने का आग्रह किया। अनसुइया जी के ऐसा करते ही तीनों देव ने उनसे वरदान मांगने को कहा जिसपर उन्होंने कहा कि आप तीनों देव मुझे पुत्र के रूप में प्राप्त हों। आगे चलकर तीनों देव अनसुइया के गर्भ से प्रकट होते हैं और वो समय मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा का प्रदोषकाल था। 

नारायण के अवतार होने के कारण दत्तात्रेय का पूजन पूर्णिमा, गुरुवार और दत्त अवतरण दिन किया जाता है। इस दिन पीले वस्त्र धारण कर पीले पुष्प, पीली मिठाई, पीले फल अर्पित करना चाहिए । इस दिन ऊं नमो भगवते दत्तात्रेयाय' मंत्र के जाप से जीवन सुखमय बनता है। इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

भगवान दत्तात्रेय के अवतरण दिवस को भारत में विशेष रूप से गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र आदि राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है पवित्र नदियों में लोग स्नान करते हैं और भगवान दत्तात्रेय के मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं ।

अक्षरा आर्या