ऐसी मान्यता है कि कोई भी शुभ कार्य भद्रा में नहीं करना चाहिए क्योंकि भद्रा में किया गया कोई भी शुभ कार्य सफल या फलदाई नहीं होता है. इसीलिए कोई भी शुभ कार्य करने से पहले भद्रा पर विचार जरूर किया जाता है. भद्रा को विष्टि नाम से भी जाना जाता है.
कौन है भद्रा? धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भद्रा को सूर्य देवता की पुत्री कहा जाता है. साथ में भद्रा, न्याय के देवता भगवान शनि की बहन हैं. भद्रा को 12 और नामों से भी जाना जाता है. जैसे- धन्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारुद्रा, विष्टि, कुलपुत्रिका, भैरवी महाकाली और असुरक्षयकरी. ऐसा भी कहा जाता है कि रोज सुबह जो भी इन 12 नामों का स्मरण करता है उसे किसी भी तरह का अपमान और हानि का भय नहीं रहता है.
भद्रा की गणना: किसी भी शुभ मुहूर्त की गणना भारतीय पंचांग के आधार पर की जाती है. भारतीय पंचांग के मुख्य भाग में तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण मुहूर्त आते हैं. करण मुहूर्त को पंचांग का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है. करण की कुल संख्या 11 होती है जिसमें से 4 करण अचर होते हैं और 7 करण चर होते हैं. इन्हीं 7 चर करणों में से ही एक विष्टि नामक करण होता है. इसी विष्टि करण को ही भद्रा कहा जाता है. भद्रा चर करण होने के नाते तीनों लोकों अर्थात स्वर्ग लोक, पाताल लोक और पृथ्वी लोक में हमेशा गतिशील होती है.
भद्रा का वास स्थान: भद्रा के वास स्थान का पता लगाने के लिए यह देखा जाता है कि चन्द्रमा किस राशि में है. उसके मुताबिक भद्रा का वास स्थान ज्ञात किया जाता है. जैसे- जब चन्द्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होता है तब भद्रा का वास स्वर्ग लोक में माना जाता है. जब चन्द्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है तब भद्रा का वास पाताल लोक में माना जाता है और जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी लोक पर माना जाता है. भद्रा के पृथ्वी लोक पर वास के समय में कोई शुभ कार्य करने की मनाही होती है.