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लद्दाख में है 350 साल पुराना दिस्कित मठ, यहां बनाई गई है भविष्य में आने वाले मैत्रेय बुद्ध की 104 फीट ऊंची मूर्ति

लद्दाख के उत्तर-पूर्व में नुब्रा घाटी है। यह श्योक और नुब्रा नदियों के संगम से बनी है। यहां 14वीं सदी में बना दिस्कित मठ है। ये नुब्रा घाटी के सबसे बड़े और सबसे पुराने बौद्ध मठों में से एक माना जाता है। यहां पर मौजूद मैत्रेय बुद्ध कि 104 फीट ऊंची मूर्ति आकर्षण का केंद्र है। माना जाता है कि बौद्ध धर्म की रक्षा करने और शांति को बढ़ावा देने के लिए आने वाले समय में मैत्रेय बुद्ध का जन्म होगा। जिन्हें भविष्य का बुद्ध भी कहा जाता है। इनकी मूर्ति 2010 में बना दी गई है।

दलाई लामा ने किया था अनावरण
ये विशाल मूर्ति समुद्र तल से 10,310 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ों के बीच में खुले आसमान के नीचे बनी हुई है। इस मूर्ति का निर्माण घाटी के मूल निवासियों से एकत्र किए दान से किया गया था। इसके अलावा 8 किलो सोना रिजु मठ ने दान किया था। इसका निर्माण अप्रैल 2006 में शुरू हुआ और इसका अनावरण तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई-लामा द्वारा 2010 में किया गया था। स्थानीय लोगों के अनुसार मैत्रेय बुद्ध मूर्ति शांति को बढ़ावा देने और दिस्कित गांव की रक्षा करने के लिए बनाई गई थी।

भविष्य में होंगे अवतरित
मैत्रेय बुद्ध को भविष्य का बुद्ध माना जाता है और इन्हें हंसता बुद्ध के रूप में भी जाना जाता है। बौद्ध मान्यताओं के अनुसार मैत्रेय भविष्य के बुद्ध हैं। अमिताभ सूत्र और सद्धर्मपुण्डरीक सूत्र जैसे बौद्ध ग्रन्थों में इनका नाम अजित भी बताया गया है। बौद्ध परम्पराओं के मुताबिक, मैत्रेय एक बोधिसत्व हैं जो धरती पर भविष्य में अवतरित होंगे और बुद्धत्व प्राप्त करेंगे तथा विशुद्ध धर्म की शिक्षा देंगे। ग्रन्थों के मुताबिक, मैत्रेय गौतम बुद्ध के उत्तराधिकारी होंगे।

तिब्बती शैली की वास्तु कला
यदि मठ की बात करें तो दिस्कित मठ 350 साल पुराना मठ है। यह गोम्पा गांव का मुख्य आकर्षण है। इसे नुब्रा घाटी के सबसे बड़े और सबसे पुराने बौद्ध मठों में से एक माना जाता है। इसे 14वीं सदी में त्सोंग खपा के एक शिष्य चंग्जे मत्से राब जंगपो द्वारा स्थापित किया गया था। इस गोम्पा में मैत्रेय बुद्ध की मूर्ति , चित्रकारी और नगाड़ा स्थापित हैं। यह मठ तिब्बती संस्कृति और तिब्बती शैली की वास्तु कला का प्रतिनिधित्व करता है। मठ में फरवरी महीने में स्केपगोट महोत्सव मनाया जाता है, इसमें लामाओं द्वारा मुखौटा पहनकर नृत्य किया जाता है, जो कि बुराई पर अच्छाई के जीत का प्रतीक माना जाता है।