कुंभ महापर्व जितना विराट है उसकी गाथाएं भी उतनी विशाल हैं। कुंभ ऐसा महापर्व है जिसकी सुगंध विदेशों में भी खूब फैली है। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, यूरोप आदि तमाम स्थानों से लोग कुंभ देखने आते हैं। कुंभ का रिश्ता साधु, संन्यासियों और बैरागी उदासी बाबाओं तक ही नहीं बल्कि सम्राटों तक भी रहा है।
श्रद्धालु के रूप में राजा-महाराजा न केवल कुंभ नगरों में लंबे समय के लिए आते, बल्कि अपना राजपाट भी यहीं से चलाते थे। साधु जब कुंभ स्नान को निकलते तब राजा महाराजा एक दिन के लिए अपने तमाम राजसी अलंकार, गहने और मुकुट साधुओं को सौंप देते।
बाबाओं को कंधों पर उठाकर गंगा आदि पवित्र नदियों के तटों पर ले जाते थे। क्यों कि राजसी वैभव त्यागकर राजा उस दिन साधुओं को शाही सम्मान, हाथी, घोड़े सौंप देते। अत: कुंभ स्नानों को शाही स्नान और जमातों को शाहियां कहा जाने लगा। भारतीय अध्यात्म परंपरा ऐसे मूल्यों से ही आज तक जीवंत है। कुंभ के शाही स्नान आज भी होते हैं और वैभवशाली भारत की याद दिलाते हैं।
हरिद्वार कुंभ मेले के दौरान पुलिस अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ ही आमजन को संचार व्यवस्था को लेकर किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो, इसके लिए अपर पुलिस अधीक्षक संचार ने कुंभ मेला क्षेत्र में अलग-अलग टीमों का गठन किया है।