Sanskar
Related News

शुक्ल और कृष्ण पक्ष से क्या है शिव का संबंध ?

हिंदू कैलेंडर के अनुसार महीनों की गणना सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर की जाती है जिसमें 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं अमावस्या से पूर्णिमा तक का समय वो होता है, जब चंद्रमा का प्रकाश बढ़ता जाता है वहीं कृष्ण पक्ष, पूर्णिमा से अमावस्या तक का वो समय होता है, जब चंद्रमा का प्रकाश घटता जाता है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष चंद्रमा की कलाओं के अनुसार महीने को दो भागों में विभाजित करते हैं और प्रत्येक पक्ष के अपने-अपने महत्व और उपयोग हैं।

 

कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के नाम वाली इस परंपरा से भगवान शिव का एक गहरा संबंध है शिवमहापुराण के अनुसार एक समय सतयुग में दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से कर दिया था लेकिन चंद्रमा इनमें से एक, रोहिणी के प्रति ही आसक्त थे और बाकियों की अवहेलना करते थे। उन सभी ने अपने पिता दक्ष से बात की और फिर उन्होंने भी चन्द्रमा को समझाया किंतु बात नहीं बनी। इतना ही नहीं, अपने रूप रंग के अभिमान में चंद्रमा ने दक्ष का ही अपमान कर दिया। दक्ष इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण चंद्रमा का तेज धीरे-धीरे समाप्त हो गया। ब्रह्माजी की सलाह पर उन्होने महादेव को प्रसन्न करने के लिए गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में समुद्र तट पर शिवलिंग बनाकर घोर तप आरंभ किया। एक दिन महादेव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। चंद्रमा ने पहले तो अपनी पत्नियों को उनके अधिकार से वंचित करने के लिए क्षमा मांगी और फिर पहले जैसे कांति के लिए क्षय रोग से मुक्ति का आग्रह किया।

 

चूंकि महादेव को दक्ष के दिये श्राप का भी मान रखना था, इसलिए उन्होंने चंद्रमा के प्राणों की रक्षा करते हुए उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया। साथ ही एक महीने में दो पक्षों की व्यवस्था की रचना कर दी। उन्होंने कहा - अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष में तुम मेरे वरदान से तेजस्वी और कांतिमय हो जाओगे और पूर्णिमा पर अपने पूरे आकार को प्राप्त करोगे लेकिन दक्ष के श्राप के प्रभाव से पूर्णिमा के पश्चात कृष्ण पक्ष लगते ही तुम्हारी आभा फीकी होने लगोगी।मान्यता है कि कालान्तर में चंद्रमा की वो सताइस पत्नियां ही सताइस नक्षत्र बनीं। यही नहीं, चंद्रमा को मस्तक पर स्थान देने के कारण ही महादेव का एक नाम चन्द्रमोलेश्वर भी पड़ा। चंद्रमा की स्तुति से महादेव जिस स्थान पर निराकार से साकार हो गए थे, उस स्थान की देवताओं ने पूजा की और वहां चन्द्रमा द्वारा बनाया गया शिवलिंग ही प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के नाम से विख्यात हुआ।

 

:- रमन शर्मा