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राजराजेश्वरी देवी मंदिर के हवन और यज्ञ की भस्म पोस्ट ऑफिस के जरिए विदेशी भक्तों तक पहुंचती है

उत्तराखंड में चारधामों के अलावा भी कई ऐसे मंदिर हैं, जहां देश ही नहीं, विदेशी भक्त भी पहुंचते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है देवलगढ़ का राजराजेश्वरी सिद्ध पीठ। ये मंदिर श्रीनगर गढ़वाल से 18 किमी दूर स्थित है। मंदिर सालभर भक्तों के लिए खुला रहता है। यहां गौरादेवी की पूजा की जाती है।

बद्रीनाथ के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल के मुताबिक राजराजेश्वरी सिद्धपीठ आने वाले भक्तों की धन, वैभव, सुख-समृद्धि की मनोकामनाएं देवी मां पूरी करती हैं। मान्यता है कि इस जगह पर गौरादेवी ने लोक कल्याण के लिए तप किया था। पुराने समय से ही राजराजेश्वरी गढ़वाल के राजा की कुलदेवी है। 1512 में गढ़वाल के राजा अजयपाल ने चांदपुरगढ़ी से बदलकर देवलगढ़ को राजधानी बनाया था। इसके बाद अजयपाल ने चांदपुरगढ़ी से श्रीयंत्र लेकर देवलगढ़ पहुंचे और यहां के मंदिर में यंत्र को स्थापित किया। इसके अलावा महिषमर्दिनी यंत्र और कामेश्वरी यंत्र भी राजराजेश्वरी मंदिर में स्थापित किए गए हैं।
देवी मां के भक्त देश ही नहीं, विदेश में भी हैं। भक्तों की मांग पर मंदिर से पोस्ट ऑफिस के जरिए हवन-यज्ञ की भभूत यानी भस्म भेजी जाती है। विदेश में सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, लंदन, अमेरिका जैसे देशों में देवी मां के कई भक्त हैं। राजराजेश्वरी मंदिर ऊंचाई पर स्थित है। हर साल अप्रैल में यहां मेला लगता है।