कामदेव को काम वासना प्रेम का देवता माना जाता है। इस जगत में काम इच्छा के यही जनक है। जब दक्ष प्रजापति के हवन में मां सती अपने और प्रतिदेव शिव का जब अपमान न सह सकी तो उन्होंने उसी पवित्र हवन कुंड में कुद कर खुद को सती कर लिया। इस कृत्य से भगवान शिव पूरी तरह टूट गए और घोर तपस्या में लीन हो गए। समय के साथ मां सती ने हिमालय की पुत्री के रुप में फिर से शिव मिलन के लिए जन्म ले लिया पर शिवजी वर्षो तक अपनी उसी तपस्या में लीन ही रहे। देवताओं ने शिव पार्वती मिलन के लिए भगवान शिव की उस तपस्या को भंग करने के उपाय सोचने लगे और तब सभी की सहमती पर भगवान कामदेव को इस कार्य में लगा दिया। कामदेव शिव तपोस्थली पर पहुंचे और तरह-तरह के प्रयोग करके शिव का ध्यान भंग करने में लग गए। कामदेव ने एक पुष्प बाण शिव पर छोड़ा था। इस कार्य में कामदेव कामबयाब हो गए उन्होंने शिवजी की तपस्या भंग कर दी लेकिन शिवजी इस बात पर क्रोधित उठे और अपनी तीसरी आंख से अग्नि निकालकर पल भर में ही कामदेव को भस्म कर दिया। देवता एक तरफ शिवजी के फिर से जाग्रत होने पर खुश थे लेकिन वहीं दूसरी तरफ अपने प्राणों का बलिदान देने वाले कामदेव पर दुखी थे। कामदेव की पत्नी रति अपने पति के भस्म को देखकर जोर-जोर से रोने लगी और भोलेनाथ से विनती करे लगी की उसे उनका पति लौटा दे। इस पर शिवजी ने उन्हें ये आश्वासन दिया कि द्वारपयुग में भगवान कृष्ण के पुत्र रुप में फिर कामदेव जन्म लेंगे।
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