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"कैसे पड़ा मां का नाम महागौरी"

नवरात्रि का आठवां दिन देवी दुर्गा के महागौरी स्वरुप को समर्पित है। नवरात्रि के आठवें दिन देवी महागौरी की आराधना करनी चाहिए। इनकी सच्चे मन और साफ़ ह्रदय से लोक कल्याण की भावना को ध्यान में रखते हुए आराधना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। हिमालय पुत्री देवी उमा ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए बड़ा ही कठोर तप किया था। उस कठोर तप की वजह से देवी उमा का शरीर काला पड़ गया था जब उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने देवी को दर्शन दिए और उनकी मनोकामना के बारे में पूछा तो देवी ने कहा की प्रभु मैं आपको पति रूप में पाना चाहती हूं। शिव ने उनकी मांग को सहर्ष स्वीकार कर लिया और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में साथ ले जाने का वचन दिया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने देवी को गौर वर्ण प्रदान किया जिसकी वजह से देवी उमा को गौरी के नाम से भी जाना जाता है। महादेव की अर्धांगिनी होने की वजह से देवी गौरी का नाम महागौरी पड़ा क्योंकि महादेव के बिना गौरी और गौरी के बिना महादेव अधूरे है। महागौरी का नाम लेने से ही भगवान शिव और देवी पार्वती दोनों की आराधना हो जाती है। देवी महागौरी का वाहन वृषभ और सिंह दोनों ही हैं। देवी का स्वरुप बड़ा ही मनोहारी है देवी की चार भुजाएं है दाहिनी ओर की एक भुजा अभयमुद्रा में है तथा दूसरी भुजा में त्रिशूल मौजूद है| वहीँ बायीं तरफ की एक भुजा में डमरू है तथा दूसरी भुजा वरमुद्रा में है| या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता | नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:..