भक्ति ही भगवान से मिलन का मार्ग है। यह कथन अपने आप को इतिहास में कई बार सिद्ध कर चुका है। सच्चे मन से किये गए श्रवण, कीर्तन और स्मरण से तो भगवान भी अपने आप को भक्त से मिलने से नहीं रोक सकते। एक ऐसी ही कथा का उदाहरण रामायण में देखने को मिलता है जहाँ शबरी की भक्ति ने भगवान श्रीराम को उससे मिलने पर विवश कर दिया भगवान राम जब वनवास में थे। उनकी मुलाकात शबरी से हुई। शबरी का असली नाम श्रमणा था जो एक भील समुदाय से थी। शबरी का विवाह भील कुमार से हुआ था चूंकि शबरी के पिता भील जाति के मुखिया थे। शबरी का हृदय बहुत निर्मल था। जब शबरी का विवाह हुआ तो परंपरा के अनुसार पशुओं को बलि के लिए लाया गया। शबरी को यह देखकर बहुत दुख हुआ। शबरी को यह परंपरा पसंद नहीं आई और विवाह से ठीक एक दिन पूर्व वह घर छोड़कर दंडकारण्य वन में आकर निवास करने लगी। उस वन में मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे। शबरी, ऋषि की सेवा करना चाहती थी, लेकिन उसके मन में संशय था कि वह भील जाति से है इसलिए उसे यह अवसर नहीं मिल पाएगा। शबरी सुबह ऋषियों के उठने से पहले ही उस मार्ग को साफ कर देती थी जो आश्रम से नदी तक जाता था। शबरी कांटे चुनकर रास्ते में साफ बालू बिछा देती थी। शबरी यह सब इस तरह से करती थी, जिससे किसी को इसका पता न चले। एक दिन शबरी को ऐसा करते हुए एक ऋषि ने देख लिया और उसकी सेवा से ऋषि बहुत प्रसन्न हुए। शबरी की निष्ठा को देखते हुए ऋषि ने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी। ऋषि मातंग का जब अंतिम समय आया तो उन्होंने शबरी को बुलाकर कहा कि वह अपने आश्रम में ही प्रभु राम की प्रतीक्षा करे वे उससे मिलने जरूर आएंगे। इसके बाद ऋषि ने देह त्याग दिया। लेकिन शबरी, ऋषि की बात को मानकर भगवान राम का नित्य इंतजार करने लगी। रोज की तरह ही वह रास्ते को साफ करती। भगवान के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती। मीठे बेर के लिए वह प्रत्येक बेर को चखकर एक पात्र में रखती। ऐसा करते हुए कई वर्ष बीत गए। शबरी की यह दिनचर्या चलती रही। एक दिन प्रभु राम से मिलने का समय आया। उसे पता चला कि दो सुंदर युवक उसे ढूंढ रहे हैं। वह समझ गई कि वे और कोई नहीं बल्कि उसके प्रभु राम ही हैं। लेकिन तब शबरी वृद्ध हो चली थी। भगवान राम के आने की खबर से शबरी में ऊर्जा और उत्साह आ गया। प्रभु को आश्रम आता देख शबरी को अति प्रसन्नता हुई। शबरी ने भगवान राम के चरणों को धोकर उन्हें आसन दिया। इसके बाद वह झूठे बेर लेकर आई जो भगवान के लिए उसने तोड़े थे। भगवान राम ने शबरी के झूठे बेर बहुत प्रेम से खाए। तब प्रभु राम ने कहा - कहे रघुपति सुन भामिनी बाता, मानहु एक भगति कर नाता प्रभु श्रीराम ने शबरी को भामिनी कहकर संबोधित किया है। जिसका अर्थ अत्यन्त आदरणीय नारी होता है। बेर खाने के बाद प्रभु राम ने शबरी से कहा कि, हे आदरणीय नारी, मैं केवल प्रेम के रिश्ते को मानता हूँ। तुम कौन हो, तुम किस परिवार मैं पैदा हुईं, तुम्हारी जाति क्या है, यह सब कोई मायने नहीं रखता। तुम्हारा मेरे प्रति प्रेम ही मुझे तम्हारे घर तक लेकर आया है। अर्थात भगवान और भक्त के बीच केवल प्रेम का रिश्ता होता है। मन में अगर भगवान के प्रति प्रेम हो, तो आपको उन्हें खोजने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। वे स्वयं ही आप तक पहुँच जायेंगे। और उन्हें सच्चे मन से अर्पित की कई हर एक वास्तु वे प्रेमपूर्वक स्वीकार करते हैं।
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