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मिथिलांचल के मखाना को मिला जीआई टैग, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब होगा कारोबार

बिहार: पोषकतत्व से भरपूर, प्राकृतिक रूप से उगाए जाने वाला मखाना को आख़िरकार उसकी पहचान मिल गई। इसके साथ ही बिहार के मिथिलांचल के किसानों के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। केंद्र सरकार के द्वारा मिथिला मखाना को जीआई टैग से नवाज़ा गया है। बिहार में लंबे  समय से लोगों के द्वारा मखाना की  जीआई टैगिंग की मांग की जा रही थी। मखाना को टैग मिलने के बाद यह बिहार का कुल पाँचवा कृषि उत्पाद है जिसे जीआई टैग से नवाज़ा गया है। इससे पहले जर्दालु आम, कतरनी धान, मगही पान और शाही लीची को यह टैग मिल चुका है। जीआई टैग मिलने के बाद मिथिला क्षेत्र में ख़ुशी की लहर छा गई है। किसानों में उत्साह का माहौल है। बता दें की पूरे भारत का 80 फ़ीसदी मखाना अकेले बिहार में उत्पादित किया जाता है और बिहार में भी मिथिला क्षेत्र में सर्वाधिक मिलता है और यही कारण है की इस फ़सल को भौगोलिक सूचक में मिथिला मखाना के नाम से प्रस्तावित किया गया था। GI टैग मिलने के बाद उम्मीद की जा रही है की अंतरराष्ट्रीय कारोबार अब 10 गुना बढ़ सकता है।  एक आकड़े के अनुसार हर साल लगभग 120,000 टन मखाने बीज का उत्पादन होता है जिससे 40,000 टन मखाने का लावा प्राप्त होता है। मिथिलांचल क्षेत्र में दरभंगा, सहरसा, पुर्णिया, कटिहार आदि जगहों पर मखाने की खेती करी जाती है। वर्तमान समय की बात करें तो बिहार हर साल मखाने का एक हज़ार करोड़ का कारोबार करता है जिसमें ज़्यादातर आय विदेशों से होती है। GI टैग मिलने के बाद उम्मीद की जा रही है की प्रतिवर्ष मखाने का कारोबार अब दस हज़ार करोड़ तक के आकड़ें को छू सकता है। केंद्र सरकार द्वारा मिथिला मखाना को जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग देने के बाद किसानों को काफ़ी मज़बूती मिलेगी और उन्हें अब इसकी खेती का अनुरूप बेहतर दाम मिल पाएगा।