Sanskar
Related News

क्या है राधाष्टमी का महत्व, कथा और पूजन विधि ?

नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी।
रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।।

अर्थात् रासमण्डल में निवास करने वाली हे परमेश्वरि ! आपको नमस्कार है। श्रीकृष्ण को प्राणों से भी अधिक प्रिय हे रासेश्वरि ! आपको नमस्कार है।

हिंदू धर्म में जब भी श्रीकृष्ण का नाम लिया जाता है, उनके साथ राधा रानी को जरुर याद किया जाता है। राधा रानी को भले ही श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी का दर्जा न मिला हो, लेकिन सच्चे प्रेम के रुप में उन्हें हमेशा याद किया जाता है। यूं कहा जाए कि राधा के बिना कृष्ण का नाम अधूरा है। यही वजह है कि श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के कुछ ही दिनों के बाद राधा रानी का जन्म दिवस यानी राधाष्टमी मनाते है। आइए जानते हैं राधा अष्टमी के महत्व, कथा और पूजन विधि के बारे में।

राधे राधे जपा करो

सनातन धर्म के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय राधा रानी का जन्मोत्सव भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यानी कृष्ण जन्माष्टमी के तकरीबन 15 दिन बाद राधाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह शुभ अवसर 23 सितंबर को है । कृष्ण जन्माष्टमी की ही तरह राधा अष्टमी का पर्व भी मथुरा, वृंदावन और बरसाने के साथ ही पूरे देश में धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं घर में सुख-शांति और खुशहाली के लिए व्रत रखती हैं।

राधा रानी भगवान कृष्ण की प्रेयसी हैं। राधा-कृष्ण दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि राधा का नाम जपने से भगवान श्री कृष्ण जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। राधा अष्टमी के दिन व्रत रखने और राधा रानी के साथ कृष्ण जी की पूजा करने से घर में धन-धान्य, सुख-शांति आती है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

राधाष्टमी पर्व की कथा

राधा श्रीकृष्ण के साथ गोलोक में निवास करती थीं। एक बार देवी राधा गोलोक में नहीं थीं । उस समय श्रीकृष्ण अपनी एक सखी विराजा के साथ गोलोक में विहार कर रहे थे। राधाजी यह सुनकर क्रोधित हो गईं और तुरंत श्रीकृष्ण के पास जा पहुंची और उन्हें भला-बुरा कहने लगीं। यह देखकर कान्हा के मित्र श्रीदामा को बुरा लगा और उन्होंने राधा को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। श्रीदामा बलराम और श्रीकृष्ण के सखाओं में एक प्रधान गोप बालक थे। राधा को इस तरह क्रोधित देखकर विराजा वहां से नदी रूप में चली गईं।

इस श्राप के बाद राधा ने श्रीदामा को राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया। देवी राधा के श्राप के कारण ही श्रीदामा ने शंखचूड़ राक्षस के रूप में जन्म लिया। वही राक्षस, जो भगवान विष्णु का अनन्य भक्त बना और देवी राधा ने वृषभानुजी की पुत्री के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया। लेकिन राधा वृषभानु जी की पत्नी देवी कीर्ति के गर्भ से नहीं जन्मीं।

जब श्रीदामा और राधा ने एक-दूसरे को श्राप दिया तब श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि आपको पृथ्वी पर देवी कीर्ति और वृषभानु जी की पुत्री के रूप में रहना है। वहां आपका विवाह रायाण नामक एक वैश्य से होगा। रायाण मेरा ही अंशावतार होगा और पृथ्वी पर भी आप मेरी प्रिया बनकर रहेंगी। अब आप पृथ्वी पर जन्म लेने की तैयारी करें। सांसारिक दृष्टि में देवी कीर्ति गर्भवती हुईं लेकिन उनके गर्भ में योगमाया की प्रेरणा से वायु का प्रवेश हुआ और उन्होंने वायु को ही जन्म दिया । जब वह प्रसव पीड़ा से गुजर रहीं थी, उसी समय वहां देवी राधा कन्या के रूप में प्रकट हो गईं।

व्रत का महत्व

कृष्‍ण प्रिया राधा रानी के प्राकट्य दिवस पर व्रत रखने से भगवान श्रीकृष्‍ण भी प्रसन्‍न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। राधा नाम संसार के सभी दुखों को हरने वाला है। मान्‍यता के अनुसार इस व्रत को करने से धन की कमी नहीं होती और घर में समृद्धि बनी रहती है।

मान्यता है कि राधा के बिना कृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी गई है। जो लोग कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं, उन्हें राधा रानी के जन्मोत्सव यानी राधा अष्टमी पर भी व्रत रखना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि राधा अष्टमी के व्रत के बिना कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है। इस दिन व्रत और पूजन करने वालों को सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

पूजा विधि

  • राधा अष्टमी के दिन प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद तांबे या मिट्टी का कलश पूजन स्थल पर रखें और एक तांबे के पात्र में राधा जी की मूर्ति स्थापित करें।
  • एक साफ चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं। उसके ऊपर कृष्ण के साथ राधा रानी की प्रतिमा स्थापित करें।
  • गंगा जल और पंचामृत से स्नान कराकर सुंदर वस्त्र पहनाकर श्रृंगार करें।
  • चंदन, अक्षत, ऋतु पुष्प और फल चढ़ाएं । मिष्ठान भी अर्पित करें।
  • इसके बाद राधा जी की कृपा के निमित्त षडक्षर, सप्‍ताक्षर अथवा अष्‍टाक्षर मंत्रों का जाप करें व कथा सुनें।
  • शास्त्रों के अनुसार पहले 'राधा' नाम का उच्चारण करने के पश्चात 'कृष्ण' नाम का उच्चारण करना चाहिए।
  • साथ ही राधा कृष्ण की आरती अवश्य गाएं।

:- रजत द्विवेदी