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आज जितिया व्रत है. हालांकि अष्टमी तिथि 9 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 35 मिनट से ही लग चुकी है. लेकिन व्रत और त्योहार हमेशा उदया तिथि में ही मान्य माने जाते हैं. इसलिए जितिया व्रत का प्रारंभ भले ही 9 सितंबर को हुआ है. लेकिन माताएं आज संतान के स्वस्थ जीवन और लंबी आयु की कामना के लिए जितिया व्रत हैं. जितिया व्रत में माताएं निर्जला यानी कि बिना भोजन-पानी के उपवास करती हैं.
जितिया व्रत कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जितिया व्रत का सम्बन्ध महाभारत काल से है. जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था तब अश्वत्थामा अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उतावला था. वो गुस्से से आग-बबूला हो रहा था. इस बदले की आग में एक दिन छिपकर पांडवों के स्थान पर गया. जब वो वहां पहुंचा तो उसने पांडवों के पांच पुत्रों को मार डाला. उसे लगा कि वो पांच पांडव है जिन्हें वो मार रहा है. जब पांडवों को इस बात का पता चला तो उन्हें अश्वत्थामा की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया. इसके चलते अर्जुन ने अश्वत्थामा की मणि छीन ली. यह देख अश्वत्थामा को पांडवों पर और क्रोध आ गया. तब उसने योजना बनाई कि वो उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को जान से मार देगा. इसके लिए अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया.
यह सब श्री कृष्ण जानते थे. उन्हें पता था कि ब्रह्मास्त्र को रोक पाना नामुमकिन है. यह जानते हुए भी कि ब्रह्मास्त्र को रोकना नामुमकि है उन्होंने पांडवों के पुत्र को भी बचाना था. अत: श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को दे दिया. इससे वह बालक पुनर्जीवित हो गया. बड़ा होकर यह बच्चा राजा परीक्षित बना. यही कारण था कि इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा क्योंकि उत्तरा के बच्चे को श्री कृष्ण ने पुनर्जीवित किया था. तभी से संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए यह व्रत माताएं यह व्रत करती हैं.