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प्रकृति की गोद में बसा महाबलेश्वर धाम - रुद्राक्ष रूप में स्थित है शिवलिंग

महाबलेश्वर धाम मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर है। जो महाराष्ट्र के सतारा जिले के महाबलेश्वर पर्यटन स्थल पर स्थित है। पौराणिक महत्व के साथ ही इस मंदिर का वृहद इतिहास भी है। यह मंदिर हेमदंत वास्तुकला का एक अद्भुद उदाहरण है। मान्यता के अनुसार महाबलेश्वर मंदिर के दर्शन मात्र से ही भक्तों के तमाम कष्टों का निवारण हो जाता है।

 

प्रकृति से उत्तपन्न है, स्वयंभू शिवलिंग

 

यूं तो देशभर में महादेव के अनेक प्रसिद्ध मंदिर है। लेकिन कुछ ही हैं जहां ‘स्वयंभू’ (स्वयं उत्पन्न) शिव लिंग है लेकिन महाबलेश्वर धाम के गर्भगृह में 6 फूट लंबा ‘स्वयंभू’ शिवलिंग सबसे विशेष है, जो दुनिया में एकमात्र रुद्राक्ष के आकार का अद्वितीय शिवलिंग है। हजारों साल पुराना यह शिवलिंग ‘त्रिगुणात्मक लिंग’ महाबलेश्वर, अतिवलेश्वर और कोटेश्वर का प्रतीक है। मंदिर परिसर में नंदी और कालभैरव की कई मूर्तियां भी हैं।

 

करोड़ों वर्ष पुराना है शिवलिंग

महाबलेश्वर मंदिर स्वयं लगभग 800 वर्ष पुराना है, जबकि यहां जो स्वयंभू शिवलिंग है वो करोड़ों वर्ष पुराना माना जाता है। जब सह्याद्री पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ था। हेमदंत शैली में निर्मित इस मंदिर के हाल में भगवान शिव को समर्पित प्राचीन कलाकृतियां भी हैं। जिनमें त्रिशूल, रुद्राक्ष और डमरू शामिल हैं। जो लगभग 300 साल पुराने हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव स्वयं सावन के पवित्र महीने में इन पवित्र वस्तुओं का उपयोग करने के लिए मंदिर आते हैं।

 

स्कन्द पुराण में मिलता है मंदिर का वर्णन

 

पौराणिक स्कंद पुराण के सह्याद्रि खंड के पहले और दूसरे अध्याय में शिवलिंग के प्रकट होने के उल्लेख, विस्तार से वर्णित है। पौराणिक कथा के अनुसार, श्रृष्टि की रचना के समय भगवान ब्रह्मा मानव की रचना के लिए सह्याद्रि के जंगलों में ध्यान कर रहे थे। इस दौरान दो राक्षस भाई, अतिबल और महाबल ने पूरे क्षेत्र में आतंक मचा रखा था।

 

ब्रह्म देव के कहने पर भगवान विष्णु अतिबल को मारने में कामयाब रहे, वहीं महाबल को अमरता का वरदान प्राप्त था, महाबल को इस संसार से मुक्ति दिलाने के लिए ब्रह्मा और विष्णु ने भगवान शिव और देवी आदिमाया से प्रार्थना की और महाबल के संहार हुआ। परिणामस्वरूप, भगवान शिव रुद्राक्ष के आकार में शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए और महाबल के नाम से इस क्षेत्र का नाम ‘महाबलेश्वर’ रखा गया।

 

महाबलेश्वर धाम कैसे पहुंचें

 

यदि आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं तो सबसे निकटतम हवाई अड्डा पुणे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो लगभग 120 किलोमीटर दूर है। एयर पोर्ट से महाबलेश्वर के लिए टैक्सी और बसें उपलब्ध हैं। जबकि निकटतम रेलवे स्टेशन वाथर है। जो यहां से लगभग 60 किलोमीटर दूर है। आप पुणे रेलवे स्टेशन से भी यहां आ सकते हैं, लेकिन यह करीब 120 किलोमीटर दूर है। यहां पर भी सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। सड़क मार्ग के जरिए महाबलेश्वर, पुणे, मुंबई और सतारा से जुड़ा हुआ है। जहां आसानी से बस और टैक्सियां मिल जाती हैं।

 

वैसे तो वर्ष भर महाबलेश्वर धाम में भक्तों और सैलानियों का आना जाना लगा रहता है। लेकिन महाशिवरात्रि, दशहरा और सावन महोत्सव के दौरान यहां की आभा दोगुना हो जाती है।

 

:- नईम अहमद