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900 मंदिरों की अद्भुत श्रृंखला वाला 'श्री शत्रुंजय मंदिर'

यूं तो सनातन धर्म की हृदय स्थली भारतवर्ष में लाखों मंदिर हैं जिनमें से ज्यादातर अपने पौराणिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और कलात्मक शैली के लिए विशेष विख्यात हैं। लेकिन आज हम आपको ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां आपको सभी विशेषताएं एक साथ मिलेंगी। सबसे बड़ी बात ये है कि इस मंदिर में एक दो नहीं बल्कि एक साथ छोटे-बड़े 900 मंदिरों की श्रृंखला स्थापित हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं गुजरात के अद्भुत 'श्री शत्रुंजय मंदिर' की जो भावनगर जिले के पालीतान क्षेत्र में 'शत्रुंजय पर्वत' पर स्थित है। आइए विस्तार से जानते हैं।

 

क्यों रखा गया मंदिर का नाम 'श्री शत्रुंजय' ?

 

गुजरात के भावनगर से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित है पालीताना क्षेत्र, जहां बहती है प्रसिद्ध नदी शंत्रुजय। इसी के चलते यहां स्थित पर्वत को शंत्रुजय नाम दिया गया और इसी पर्वत पर स्थित होने के कारण 900 सौ मंदिर की श्रृंखला को नाम दिया गया 'श्री शत्रुंजय मंदिर'। मंदिर तक पहुंचने के लिए 3750 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। एक मान्यता ये भी है कि इस स्थल का नाम ‘शत्रुंजय’ उन संतों की वंदना से लिया गया है, जिन्होंने क्रोध, आसक्ति और ईर्ष्या जैसे नकारात्मक गुणों पर विजय प्राप्त करके निर्वाण प्राप्त किया था।

 

क्या है मंदिर से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं ?

 

धार्मिक मान्यता के अनुसार जैन धर्म के 24 में से 23 तीर्थंकर इस पर्वत पर ध्यान लगाने आए थे। इनमें प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव भी शामिल है। इतना ही नहीं उन्होंने अपना पहला सदेश भी यहीं से दिया था। यही वजह है कि लंबे समय से ये मंदिर जैन धर्मावलम्बियों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है और देश-दुनिया से लोग यहां दर्शन करने पहुंचते हैं।

 

आध्यात्मिक रूप क्यों विशेष है मंदिर ?

 

शत्रुंजय पहाड़ियों में बसा यह मंदिर आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहीं पर कई तीर्थंकरों ने मोक्ष (आध्यात्मिक मुक्ति) प्राप्त की थी। तीर्थस्थल का इतिहास और भव्यता समृद्ध रूप से परिलक्षित होती है। इसकी प्रमुख विशेषताओं में जैन धर्म के संस्थापक आदिनाथ से संबंध है, जिन्होंने एक पहाड़ी के ऊपर पेड़ के नीचे ध्यान किया था। 14वीं शताब्दी में तुर्की से आये आक्रमणकारियों द्वारा मंदिर को नष्ट कर दिया गया था। संत जिनप्रभासूरी जैसे आध्यात्मिक नेताओं के मार्गदर्शन में इसका पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार किया गया।

 

कितनी अनूठी है मंदिर निर्माण की शैली ?

 

संगमरमर से बने मंदिरों का निर्माण 11वीं सदी में किया गया था। मंदिर की निर्माण शैली इतनी आकर्षक है कि देखने वाला मोहित हो जाता है। इसे बहुत ही तैयारी, सूझबूझ और परिश्रम के साथ तब बनाया गया, जब आज जैसे उपकरण और सुविधाएं उपलब्ध नहीं थे। सुबह के समय का दृश्य तो अविस्मरणीय बन पड़ता है जब सूर्य की किरणे मंदिर के शिखरों को छूती हैं। उस समय मंदिरों की श्रृंखला सोने की तरह चमक उठती है । इसी रात में चंद्रमा के शीतल उजियारे में मोतियों सा दिखाई पड़ता है ये स्थान।

 

:- नईम अहमद