वैशाख पूर्णिमा के दिन क्यों लिया भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार ?
वैशाख महीने की पूर्णिमा कूर्म (कच्छप) अवतार जयंती के रूप में मनाई जाती है। ये पर्व इस बार 12 मई (सोमवार) को है। मान्यता है कि इसी दिन सतयुग में देवताओं और दानवों की समुद्र मंथन में सहायता करने के लिए जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार लिया था। इन्हें कच्छप अवतार भी कहा जाता है। आइये विस्तार से जानते हैं कि आखिर कूर्म अवतार से जुड़े पौराणिक संदर्भ क्या हैं ?
समुद्र मंथन के लिए हुआ कूर्म अवतार
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं को अपनी शक्ति पर बहुत अहंकार हो गया था। प्रसंग कुछ इस प्रकार है कि महर्षि दुर्वासा ने इंद्र को परिजात पुष्प की माला भेंट की थी। अहंकारवश इंद्र ने उस माला को अपने वाहन ऐरावत हाथी के मस्तक पर डाल दिया। यह देख ऋषि को इंद्र पर क्रोध आ गया और उन्होंने देवताओं को श्रीहीन यानि लक्ष्मी से वंचित होने का श्राप देकर उनकी सुख-समृद्धि समाप्त कर दी थी। श्राप के प्रभाव से लक्ष्मी जी सागर में लुप्त हो गईं। इससे सुर-असुरलोक का सारा वैभव नष्ट हो गया।
इस घटना से दु:खी होकर इंद्र भगवान विष्णु की शरण में गए। भगवान विष्णु ने इंद्र को देवताओं और दानवों सहित समुद्र मंथन के लिए कहा। राक्षस और देवता मंथन के लिए तैयार हो गए। इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथनी और नागराज वासुकि को रस्सी बनाया गया। देवताओं और राक्षसों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर मंथन करना शुरू किया लेकिन पर्वत का आधार नहीं होने के कारण वो समुद्र में डूबने लगा। ये देखकर भगवान विष्णु ने बहुत बड़े कूर्म (कछुए) का रूप लेकर समुद्र में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया। इससे पर्वत तेजी से घूमने लगा और समुद्र मंथन पूरा हुआ। समुद्र मंथन में कालकूट विष,अमृत और मां लक्ष्मी सहित चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी। नरसिंह पुराण के अनुसार कूर्मावतार भगवान विष्णु के दूसरे अवतार हैं और भागवत पुराण के अनुसार ये विष्णुजी के ग्यारहवें अवतार हैं।
कूर्म अवतार जयंती का महत्व
शास्त्रों में इस दिन की बहुत महत्ता बताई गई है। मान्यता के अनुसार इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू किया जाना बेहद शुभ माना जाता है। कूर्म जयंती के अवसर पर वास्तु दोष दूर किए जा सकते हैं और नया घर-भूमि आदि के पूजन के लिए यह सबसे उत्तम समय होता है । इस दिन अशुभ वास्तु को भी शुभ में बदला जा सकता है।