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पुतला निर्माण से जुड़े परिवारों के सामने रोजगार का संकट

कोरोना के कोप ने उत्सवों का उल्लास छीन लिया है। शारदीय नवरात्र से शुरू हो रहे त्योहारी माहौल का जोश शहर से गांव तक गायब है। श्रीरामलीला मंचन व दशहरा मेला को लेकर भी अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। इससे संबंधित गतिविधियों से जुड़े लोग भी असमंजस में हैं। बाबरा मोहल्ला निवासी राजू ‘रावण वाला’ इसकी बानगी भर हैं। 40 वर्षों में डेढ़ हजार से अधिक रावण-कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले बना चुके इस कलाकार के पास इस वर्ष एक भी पुतले का ऑर्डर नहीं हैं। जबकि गत वर्ष दशहरे पर रावण का पुतला ले जाते वक्त 38 श्रीरामलीला समितियों की ओर से वर्ष 2020 में करीब 60 पुतला बनाने की सहमति दी गई थी। तय मसौदे के अनुसार उनको ढाई से तीन महीने पहले पुतला निर्माण का बयाना मिल जाता था। लेकिन अभी तक कोई नहीं पहुंचा।

पुश्तों से पुतले बनाने का काम संभाले परिवार
बकौल राजू रावण वाला रावण का पुतला निर्माण उनका पुश्तैनी पेशा है। पिता श्रीराम प्रसाद व ताऊ शेर सिंह दशहरे पर पुतले का कार्य करते थे। 6 वर्ष की उम्र से वह भी काम में हाथ बंटाया करते। चालीस साल से खुद की कारीगरी की बदौलत रावण-कुंभकर्ण व मेघनाद का पुतला बनाते आ रहे हैं। लेकिन आज की जैसी परिस्थितियां कभी नहीं आईं। जब एक भी पुतला बनाने का आर्डर नहीं मिला हो।

3 माह पहले शुरू होता था निर्माण
राजू रावण वाला ने बताया कि पुतला निर्माण से जुड़े सामान व उपकरण 6 महीने पहले से जुटाने पड़ते हैं। वह सब जुटा भी लिया गया है। हर हाल में 3 महीने पहले पुतलों का ढांचा निर्माण प्रारंभ कर दिया जाता था। दशहरा से पहले अंतिम 30 दिन 24 घंटे पुतला निर्माण का काम चलता रहा है। दोनों बेटे संजय कुमार व कृष्णकांत, बहुएं और पत्नी राजबाला और -बेटी-दामाद से भी मदद लेने पड़ती थी।