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हर तीन साल में अधिक मास क्यों आता है? इसे मलमास क्यों कहते हैं?

हर साल आश्विन मास में पितृ पक्ष की अमावस्या के बाद अगले दिन से ही नवरात्रि शुरू हो जाती है। लेकिन, इस बार अधिकमास की वजह से नवरात्रि पूरे एक माह देरी से यानी 17 अक्टूबर से शुरू होगी। हिन्दी पंचांग में हर तीन साल में एक बार अतिरिक्त माह आता है, इसे ही अधिक मास, पुरुषोत्तम मास और मलमास के नामों जाना जाता है। ये माह 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक रहेगा।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार 160 साल बाद आश्विन मास का अधिकमास और अंग्रेजी कैलेंडर के लीप ईयर का संयोग बना है। 2020 से पहले 2 सितंबर 1860 से आश्विन अधिक मास शुरू हुआ था। अश्विन माह का अधिक मास 19 वर्ष बाद आया है। इससे पहले 2001 में आया था।

अधिक मास से क्या लाभ?

अधिक मास की वजह से सभी हिन्दू त्योहारों और ऋतुओं का तालमेल बना रहता है। जैसे, सावन माह वर्षा ऋतु में और दीपावली सर्दियों की शुरुआत में ही आती है। इसी तरह सभी त्योहार अपनी-अपनी ऋतुओं में ही आते हैं। अगर इस माह की व्यवस्था न होती तो सभी त्योहारों की ऋतुएं बदलती रहती। जैसे अधिक मास न होता तो दीपावली कभी बारिश में, कभी गर्मी में और कभी सर्दियों में आती।

इसे मलमास क्यों कहते हैं?

अधिक मास में सूर्य की संक्राति नहीं होती है यानी पूरे माह में सूर्य का राशि परिवर्तन नहीं होता है। इस कारण ये माह मलिन हो जाता है, मलिन मास यानी मलमास। माह में नामकरण, जनेऊ संस्कार, विवाह आदि मांगलिक कर्म के मुहूर्त नहीं रहते हैं। इस माह में जरूरत की चीजें खरीदी जा सकती हैं। विवाह की तारीख तय कर सकते हैं। नए घर की बुकिंग भी की जा सकती है।

इस माह में भगवान विष्णु की आराधना क्यों की जाती है?

इस संबंध में कथा प्रचलित है कि मलिन माह होने की वजह से कोई भी देवता इस माह का स्वामी नहीं बनना चाहता था। तब मलमास ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। इसके बाद विष्णुजी ने इस मास को अपना श्रेष्ठ नाम पुरुषोत्तम दिया। साथ ही, ये वर भी दिया कि माह में भागवत कथा सुनना, पढ़ना, शिवजी का पूजन करना, धार्मिक कर्म, दान करने वाले भक्तों को अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।