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कई बार विनाश का कारण अंहकार बन जाता है, पढ़िए महाभारत का यह प्रसंग


अधर्म पर धर्म की जीत की कथा है महाभारत. 18 दिन के इस युद्ध में बहुत विनाश हुआ लेकिन धर्म की जीत हुई. महाभारत में बहुत से किरदार है जो कोई न कोई सीख देते हैं लेकिन शिशुपाल का प्रसंग एक महत्वपूर्ण शिक्षा देता है. शिशुपाल चेदी राज्य का राजा था. रिश्ते में श्रीकृष्ण और शिशुपाल भाई-भाई थे. हालांकि इनका रिश्ता कभी भी अच्छा नहीं रहा. श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की मां यानी उनकी बुआं को ये वरदान दिया था कि वे शिशुपाल की सौ गलतियां माफ करेंगे.

शिशुपाल का घनिष्ठ मित्र रुक्मी था. कहते हैं ये दोनों मित्र श्रीकृष्ण को पसंद नहीं करते थे. रुक्मी चाहता था कि उसकी बहन रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से हो.

रुक्मणी श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी इसलिए उसने कृष्ण को एक ब्राह्मण के हाथों संदेशा भेजा. कृष्ण ने संदेश लाने वाले ब्राह्मण से कहा, "हे ब्राह्मण देवता! जैसा रुक्मणी मुझसे प्रेम करती हैं वैसे ही मैं भी उन्हीं से प्रेम करता हूं. मैं जानता हूँ कि रुक्मणी के माता-पिता रुक्मणी का विवाह मुझसे ही करना चाहते हैं परन्तु उनका बड़ा भाई रुक्म मुझ से शत्रुता रखने के कारण उन्हें ऐसा करने से रोक रहा है. तुम जाकर राजकुमारी रुक्मणी से कह दो कि मैं अवश्य ही उनको ब्याह कर लाउँगा."

श्रीकृष्ण ने रक्मिणी का हरण करके विवाह कर लिया. रुक्मी और श्रीकृष्ण का युद्ध भी हुआ था, जिसमें रुक्मी पराजित हुआ. इसके बाद शिशुपाल श्रीकृष्ण को परम शत्रु मानने लगा.

शिशुपाल लगातार गलतियां करता जा रहा था. उसे लग रहा था कि श्रीकृष्ण उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते लेकिन श्रीकृष्ण अपनी बुआ को दिया वचन निभा रहे थे जिसके तहत शिशुपाल की 100 गलतियां होने तक वह कुछ नहीं कर सकते थे.

युधिष्ठिर ने जब राजसूय यज्ञ आयोजित किया था तो इसमें श्रीकृष्ण को विशेष सम्मान दिया जा रहा था. इस आयोजन में शिशुपाल को आमंत्रित किया गया था. शिशुपाल को यह सहन नहीं हुआ कि श्रीकृष्ण को विशेष सम्मान दिया जा रहा है. शिशुपाल ने भरी सभा में श्रीकृष्ण का अपमान करना शुरू कर दिया. उसे सबने रोकने की कोशिश की लेकिन उसने किसी की नहीं सुनी.

हालांकि श्रीकृष्ण उसकी अभद्रता पर चुप बैठे रहे. उन्होंने शिशुपाल को कुछ नहीं कहा क्योंकि वह उसकी गलतियां गिन रहे थे. जैसे ही शिशुपाल की सौ गलतियां पूरी हो गईं, श्रीकृष्ण ने उसे सचेत किया कि अब एक भी गलती मत करना, वरना अच्छा नहीं होगा.

शिशुपाल ने श्रीकृष्ण की चेतावनी को अनसुना कर दिया और फिल अपशब्द बोलु और अपनी सौ गलतियों को पार गया. शिशुपाल ने एक और गलती की, श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र धारण कर लिया. इसके बाद कुछ ही पल में सुदर्शन चक्र ने शिशुपाल का सिर धड़ से अलग कर दिया.

इस पूरे प्रसंग से मिलने वाली सीख
व्यक्ति को कभी अहंकार नहीं करना चाहिए
व्यक्ति को किसी का अपमान नहीं करना चाहिए
अपने शब्दों पर नियंत्रण रखना चाहिए कभी किसी को अपशब्द नहीं बोलने चाहिए